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GST का असर: एक्सपोर्ट क्षेत्र के कारोबार में आई गिरावट

नई दिल्ली। जी.एस.टी. लागू होने के बाद देश से होने वाले एक्सपोर्ट में मंदी आने वाले समय में मुश्किलों का संकेत दे रही है। एक्सपोर्टस के सामने रिफंड मिलने में देरी और वर्किंग कैपिटल में रुकावट जैसी मुश्किलें हैं और उनका कहना है कि इनका असर अब प्रोडक्शन पर भी पड़ रहा है और इससे विदेशी क्लाइंट्स अन्य देशों की ओर मुड़ सकते हैं।

सोमवार को जारी आधिकारिक डाटा से जुलाई में एक्सपोर्ट 8 महीने के निचले स्तर पर पहुंचने का पता चला था। जुलाई के पहले सप्ताह में बहुत सी एक्सपोर्ट शिपमैंट फैक्टरी में ही फंसी रही थीं। सबसे अधिक कमी लेबर का अधिक इस्तेमाल करने वाले जेम्स एंड ज्यूलरी, रैडीमेड गारमैंट, फार्मास्यूटिकल्स और कापैंट्स जैसे सैक्टर्स में आई है।

जी.एस.टी. से जुड़े पेपरवर्क को लेकर एक्सपोर्टर्स के लिए स्थिति स्पष्ट न होने से हैंडमेड कार्पेट्स की प्रोडक्शन में 40 पर्सैंट की गिरावट हुई है। कार्पैट एक्सपर्ट प्रमोशन कौंसिल के चेयरमैन महावीर शर्मा ने बताया कि अमरीका में इम्पोर्टर्स को आशंका है कि प्राइस में बढ़ौतरी का भार उन पर डाला जा सकता है। भारत से प्रतिवर्ष लगभग 10,000 करोड़ रुपए के हैंडमेड कार्पेट्स का एक्सपोर्ट होता है।

मुम्बई की सरजू इंटरनैशनल के मैनेजिंग डायरैक्टर अमित गोयल ने बताया कि विदेशी क्लाइंट्स प्राइस में बढ़ौतरी नहीं चाहते क्योंकि वह प्राइस कम होने के कारण ही भारत से सोॄसग करते हैं।

जी.एस.टी. लागू होने के बाद से 5 डालर की कीमत वाले एक गारमैंट पर 20-30 सैंट रिफंड में देरी के कारण फंस रहे हैं। गोयल ने कहा कि जून तक हमारी ग्रोथ 10 पर्सैंट की थी लेकिन जुलाई में कोई ग्रोथ नहीं थी। अगले 3-4 महीने इसी तरह रहेंगे।

जी.एस.टी. के तहत अगर एक एक्सपोर्टर को अधिक ड्राबैक मिलता है तो वह इनपुट टैक्स क्रैडिट का क्लेम नहीं कर सकता, लेकिन वह स्टेट जी.एस.टी. के रिफंड का क्लेम कर सकता है।

दिल्ली के एक गारमैंट एक्सपोर्टर ने बताया कि अमरीका और यूरोप के कस्टमर्स अधिक प्राइस देने के लिए तैयार नहीं हैं। उन्होंने कहा कि कस्टमर्स चीन से इम्पोर्ट करने की चेतावनी दे रहे हैं। हम कुछ महीने में उनसे दोबारा मोलभाव करेंगे।

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