गुजरात दंगा: हाई कोर्ट ने नरोडा पाटिया नरसंहार मामले में फैसला रखा सुरक्षित

गुजरात हाई कोर्ट ने 2002 के नरोडा पाटिया नरसंहार मामले में विशेष एसआईटी अदालत के आदेश को चुनौती देने वाली याचिकाओं के एक बैच पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है, जिसमें तत्कालीन नरेंद्र मोदी सरकार के पूर्व मंत्री को 28 साल की जेल की सजा सुनाई गई थी।

न्यायमूर्ति हर्ष देवानी और एएस सुपेहिया की बेंच ने विपक्षी पार्टियों की सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया। उन्होंने विशेष जांच दल द्वारा दायर की गई याचिका को भी सुना है, जिसने 30 अगस्त 2012 को एसआईटी कोर्ट द्वारा 29 आरोपियों को बरी किए जाने को चुनौती दी है।

बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री माया कोडनानी को 28 साल की सजा सुनाई गई थी, जबकि पूर्व बजरंग दल के नेता बाबू बजरंगी को आजीवन कारावास की सज़ा दी गई थी।

कोडनानी के वकील हार्दिक देव ने कहा कि हाई कोर्ट ने कोडनानी के आवेदन पर भी फैसला सुरक्षित रख दिया, जिसमें बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और पूर्व विधायक अमरीश पटेल सहित अन्य सातों को अतिरिक्त गवाहों के तौर पर तलब किया गया था।

पीठ ने इस मामले में दंगों के उस स्थान का भी दौरा किया था, जहां गोधरा कांड के बाद अल्पसंख्यक समुदाय के 97 लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया था।

कोडनानी को आईपीसी की धारा 326 (खतरनाक हथियार या साधनों से स्वैच्छिक रूप से गंभीर चोट पहुंचाने) के तहत 28 साल की जेल की सजा सुनाई गई थी। कोर्ट ने कोडनानी को अपराधों का ‘बेताज बादशाह’ कहा था। लेकिन कोडनानी मौजूदा वक्त में बेल पर हैं।

सात अन्य आरोपियों की आईपीसी की धारा 326 के तहत पहले 10 साल की सेवा के बाद 21 साल सज़ा कर दी गई थी। वहीं 23 अभियुक्तों को 14 साल की साधारण आजीवन कारावास की सजा दी गई थी।

कोर्ट ने 29 अभियुक्तों को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया था, जिसके लिए एसआईटी को चुनौती दी गई है। इससे पहले, न्यायमूर्ति अकील कुरेशी, एमआर शाह, केएस जावेरी, जीबी शाह, सोनिया गोकानी और आरएच शुक्ल सहित कई हाई कोर्ट के जजों ने मामले से खुद को अलग कर लिया था।

अप्रैल 2015 में सर्वोच्च न्यायालय ने एसआईटी की उस शिकायत के बाद कार्यवाही रोक दी थी, जिसमें कहा गया था कि हाई कोर्ट के न्यायाधीश आरआर त्रिपाठी जल्दबाज़ी में कोडनानी की अपील सुन रहे थे।