गुजरात दंगों की भेंट चढ़ी दो बहने, मज़ार के चढ़ावे पर ज़िन्दगी गुज़ार रहीं हैं

गुजरात दंगो का असर गांधीनगर जिले के पलियाड़ गांव पर ऐसा असर हुआ है कि आजतक ये गाँव सूना पड़ा है। दंगो से पहले इस गाँव में लगभग 20 मुस्लिम परिवार रहते थे। लेकिन आज यहा सिर्फ दो बहने सकीना और हसीनाबेन ही बची हैं। ये दो बहने गांव की हाजी पीर दरगाह में रहती हैं। गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस में आग की घटना के बाद ये पहला ऐसा गाँव था जहा पर हमला हुआ था।

सकीना बताती हैं कि 500 से 1000 लोगों का एक समूह इस गांव में घुस आया। उन्होंने सकीना के भाई के साथ मारपीट की। इस दरगाह में लूटपाट की और कई घरों को तोड़ दिया। सकीना के मुताबिक इस गांव में मुसलमानों के 20 परिवार थे लेकिन सबने एक-एक कर पलियाड़ छोड़ दिया।

पलियाड़ गांव में हुए इस घटना के बाद इसके गुनहगारों को सज़ा दिलाने की कोशिश शुरू हुई लेकिन, लगभग 14 साल बाद 31 जनवरी को कलोल की एक एडिशनल डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में जज ने आदेश में लिखा की घटना के ज्यादातर गवाह अपने बयान से मुकर गये।

बाद इसके आरोपियों और पीड़ितों के बीच समझौता हो गयाऔर 26 आरोपियों को बरी कर दिया।

हालाँकि समझौते के कागज़ात भी अदालत में पेश नहीं किये गए अदालत ने सिर्फ मौखिक बयान को स्वीकार कर लिया। अदालत ने बयान से मुकरने में जिन गवाहों का नाम लिया था उनमें से एक सकीना भी है। सकीना अब उम्र के छठे दशक में प्रवेश कर चुकी है और पैसा लेकर मामला सुलझाने के सभी आरोपों को बेबुनियाद बताती है।

सकीना ने आगे बताया कि आरोपी 10-20 हज़ार देकर समझौता करना चाहते थे, लेकिन उसने साफ मना करा दिया । सकीना और हसीनाबेन ने बताया कि उन्होंने केस को अभी छोड़ा नहीं है। सकीना ने बताया कि उसने भी आरोपियों और पीड़ितों के बीच समझौते की बात सुनी लेकिन उसे ऐसा एक भी शख़्स नहीं मिला जो पैसा लेकर मामले को रफा-दफा करना चाहता हो।

सकीना और हसीना अब दरगाह में मिलने वाले चढ़ावे से अपना जीवन चलाने पर मजबूर है। दोनों बहनों का कहना है कि ये उनके पूर्वजों का गांव हैं। और वे किसी क़ीमत पर इस गांव को नहीं छोड़ेंगी।