हिसार जिले के मिर्चपुर में हुए दलित हत्याकांड में दिल्ली हाईकोर्ट ने 33 लोगों को दोषी करार दिया है। हाईकोर्ट ने इस मामले में निचली अदालत के उस फैसले को पलट दिया, जिसमें ट्रायल कोर्ट ने 20 आरोपियों को बरी कर दिया था।
अदालत ने कहा कि आजादी के 71 साल बाद भी ऊंची जातियों द्वारा दलितों के खिलाफ अत्याचार इस बात का उदाहरण है कि इसमें कोई कमी नहीं आई है। जाट समुदाय के सदस्यों का मकसद वाल्मीकि समुदाय के लोगों को सबक सिखाना था और आरोपी अपने मकसद में पूरी तरह कामयाब भी हुए।
मिर्चपुर में 21 अप्रैल 2010 को जाट समुदाय के कुछ लोगों ने वाल्मीकि बस्ती पर हमला करके उनके घरों में आग लगा दी थी। आग में ताराचंद (60) और उनकी अपंग बेटी सुमन (18) को जिंदा जला दिया गया था। घटना के बाद इस गांव से 254 दलित परिवार पलायन कर गए थे।
हाईकोर्ट ने कहा कि मौत से पहले ताराचंद के बयान से यह बात साबित होती है। जो लोग इस अपराध में शामिल थे, उन पर आईपीसी के तहत हत्या का मुकदमा बना है। इसे गैर-इरादतन हत्या मानने के ट्रायल कोर्ट के आदेश को हाई कोर्ट ने निरस्त कर दिया।
ट्रायल कोर्ट ने जिन 20 आरोपियों को बरी कर दिया था, उन्हें हाईकोर्ट ने आईपीसी और एससी-एसटी ऐक्ट के तहत दोषी माना है। इनमें 9 दोषियों की सजा अब उम्रकैद में बदलेगी। जिन 13 दोषियों को ट्रायल कोर्ट ने सजा सुनाई थी, उन्हें हाईकोर्ट ने बरकरार रखा है।
अदालत ने 20 दोषियों को 1 सितंबर 2018 को या उससे पहले समर्पण का निर्देश दिया है। ऐसा नहीं करने पर हरियाणा पुलिस को इन्हें हिरासत में लेने के लिए सभी जरूरी कदम उठाने को कहा।