हज यात्रियों के लिए स्वतंत्र संस्था की मांग, हाई कोर्ट ने मोदी सरकार से विचार करने को कहा

हाईकोर्ट ने सोमवार को केंद्र सरकार से हज यात्रा की तैयारियों की देखरेख करने के लिए स्वतंत्र मुस्लिम निकाय का गठित करने और सरकारी नियंत्रण वाली हज समिति को भंग करने की मांग पर विचार करने को कहा है। हाइकोर्ट ने इस मांग को लेकर दाखिल जनहित याचिका पर विचार करते हुए दिया है। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल और न्यायमूर्ति सी हरि शंकर की पीठ ने केंद्र सरकार और संबंधित मंत्रालय को इस मामले में गंभीरता से विचार करने को कहा है।

पीठ ने इस मामले को महत्वपूर्ण बताते हुए कहा है कि हज यात्रा की तैयारियों की देखरेख के लिए स्वतंत्र निकाय गठित करने के बारे में जल्द निर्णय ले। साथी ही इस बारे में याचिकाकर्ता शाहिद अली को सूचित करने को भी कहा है। पीठ ने अली की ओर से दाखिल याचिका का निपटारा करते हुए यह आदेश दिया है। हाईकोर्ट में दाखिल याचिका में कहा गया है कि केंद्र सरकार ने हाल ही में सब्सिडी समाप्त कर दी है, ऐसे में अब सरकारी नियंत्रण वाली हज कमेटी का कोई औचित्य नहीं रह गया है, लिहाजा इसे भंग कर एक स्वतंत्र कमेटी गठित कर दी जाय। सब्सिडी के तहत हज जाने वाले यात्रियों को आने-जाने के लिए सस्ते विमान टिकट मुहैया कराया जाता था।मिलते थे। याचिका में हज समिति अधिनियम 2002 को भी खत्म कर देना चाहिए।

याचिका के मुताबिक  सरकार ने 1959 में मुंबई से जेद्दा आने-जाने के लिए विमान सेवा पर हज यात्रियों को सब्सिडी देने का फैसला लिया था। याचिका में यह भी कहा गया है कि सरकार को हज कमेटी के मौजूदा संविधान को रद्द करने के साथ ही भारत के मुसलमान नागरिकों को सिखों की भांति अपने निकाय के गठन की अनुमति देने का भी आदेश दिए जाय।
पीठ के समक्ष कहा गया कि अल्पसंख्यकों सिखों को जिस तरह से सिख गुरूद्वारा अधिनियम, 1925 के तहत अपनी गतिविधयों के लिए अपना निकाय बनाने की अनुमति है, मुसलमानों को भी इसकी अनुमति दी जाए। याचिका में कहा गया है, यदि हज कमेटी अधिनियम को समाप्त नहीं किया गया तो इससे भारत के मुसलमानों पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा।