केरल की विनाशकारी बाढ़ ने भारी तबाही मचाई लेकिन यहां के मछुआरों ने बाढ़ में फंसे लोगों को सुरक्षित बाहर निकालने में अहम् भूमिका निभाई। लोगों ने उनको नायक का बताया और धन्यवाद दिया, लेकिन एक मामला कुछ अलग हुआ जो सामने आया है।
सीएनएन के मुताबिक, मछुआरा मैरियन जॉर्ज (47) कोल्लम शहर के एक घर के पास गया जहां एक परिवार के 17 सदस्य फंसे हुए थे। जब उसने उनसे कहा कि वह मदद करने आया है, तो उससे पूछा गया कि क्या वह एक ईसाई है।
जब उसने जवाब दिया कि वह ईसाई है तो परिवार ने उसकी नाव में आने से इंकार करते हुए उसे जाने के लिए कहा। यह ब्राह्मण परिवार विषम स्थिति के बावजूद जॉर्ज की नाव में नहीं आया।
जॉर्ज कहते हैं कि पांच घंटे बाद वह उसी पड़ोस में फिर गया और उस परिवार को मदद के लिए बुलाया। उन्होंने अपनी नाव को अपने घर के करीब डॉक किया लेकिन फिर से मना कर दिया।
जॉर्ज कहते हैं कि हमने सोचा कि वे इस स्थिति में बदल गए होंगे। जॉर्ज कहते हैं कि उन्होंने अपनी नाव टूटने से दो दिन पहले लगभग 150 लोगों को बचाया था। कई अन्य मछुआरों ने यह भी कहा है कि वे उन लोगों द्वारा अपमानित किये गए थे जिनको वो बचाने की कोशिश कर रहे थे।
राज्य सरकार के अनुसार, लगभग 3,000 मछुआरे राहत प्रयासों में शामिल होने के लिए आगे आए। अरुण माइकल का कहना है कि जब उन्होंने टीवी पर राज्य में बाढ़ की खबरों को देखा तो पठानमथिट्टा जिले में गए।
उन्होंने मजबूत धारा और बढ़ते पानी के माध्यम से अपनी नाव पर जाकर तीन दिनों की अवधि में 1500 से अधिक लोगों को सुरक्षित बाहर निकला। आखिरी दिन उन्होंने 600 लोगों को बचाया।
एक साहसी बचाव में माइकल और उसके दोस्तों को पानी से भरा घर मिला और जब उन्होंने दरवाजा तोड़ने के बाद प्रवेश किया, तो उन्हें कमरे में मानसिक रूप से बीमार महिला मिली जिसको बाहर निकाला गया।
सरकार ने प्रत्येक स्वयंसेवक मछुआरे और क्षतिग्रस्त नौकाओं की मरम्मत की लागत के लिए 3,000 रुपये के मुआवजे की घोषणा की है। कई मछुआरे पैसे के लिए इंतजार कर रहे हैं ताकि वे अपनी नावों की मरम्मत करवा सकें और मछली पकड़ने जा सकें लेकिन माइकल उनमें से एक नहीं है।
उनका कहना है कि मेरी नाव क्षतिग्रस्त है लेकिन मैं सरकार से पैसा नहीं लूंगा। मैंने पैसे या अन्य किसी लाभ के लिए यह काम नहीं किया।