छत्तीसगढ़ में भाजपा नेता की गोशाला में तीन सौ गायें मर गयीं, आपको शायद यह खबर पढ़ कर लगेगा कि मैं भाजपा के खिलाफ हूँ इसलिए मैं इस खबर को ज्यादा उछाल रहा हूँ,
लेकिन मुझे लगता है आपको इस बारे में थोड़ा कुछ और हकीकत जानने की ज़रूरत है, भाजपा जब सत्ता में आयी तो उसने गोसेवा आयोग बनाये,
भाजपा के लिए गाय हमेशा से एक राजनैतिक मुद्दा रहा है, इन गोसेवा आयोग के अध्यक्ष को मंत्री का दर्ज़ा दिया गया और गौ आयोग को बड़ा बजट दिया गया
सरकार ने योजना यह बनाई कि आवारा गाय को रखने वाली हर गोशाला को प्रति गाय पच्चीस रुपया प्रतिदिन के हिसाब से चारे के लिए गोसेवा आयोग अनुदान देगा,
इसके बाद भाजपा कार्यकर्ताओं, बजरंग दल के कार्यकर्ताओं और शिव सेना से जुड़े हुए लोगों ने धड़ाधड़ गोशालाएं खोलनी शुरू कर दीं, लेकिन समस्या थी कि इतनी गायें आयें कहाँ से ?
तो गायों के व्यापारियों पर हमले कर के उनसे गायें छीनने का धंधा शुरू हुआ, इसके बाद फ्री में गायें मिलने के दूसरे रास्ते खोजने शुरू किये गए,
छत्तीसगढ़ में आदिवासी समुदाय की बड़ी आबादी है, लेकिन यह आदिवासी राजनैतिक और आर्थिक तौर पर बेआवाज़ हैं,
आदिवासी इलाकों में पठारी इलाकों की मिट्टी सख्त होती है इसलिए बैल जल्द थक जाते हैं इसलिए आदिवासी ज्यादा संख्या में गाय बैल पालते हैं,
आदिवासी को गाय बैल खरीदना होता है तो वे लोग साप्ताहिक बाज़ार से खरीदते हैं और फिर वहाँ से पैदल लेकर अपने गाँव जाते हैं,
भाजपा कार्यकर्ताओं, बजरंग दल के कार्यकर्ताओं और शिव सेना से जुड़े हुए लोगों ने अपनी गोशालाओं के लिए इन आदिवासियों से गाय बैल छीनने शुरू किये, बाज़ार से लौटते समय आदिवासियों से जानवर छीन लिए जाने लगे, मैं जब बस्तर में था तो बहुत सारे मामले में आदिवासी मेरे पास भी शिकायत लेकर आये, मैंने पुलिस अधिकारियों के पास उन आदिवासियों को ले जाकर शिकायत भी दर्ज़ करवाई,
लेकिन पुलिस अधिकारी भी बहुत डरे हुए थे, कभी किसी आदिवासी को उसकी गायें वापिस नहीं मिलीं,
आदिवासियों से इस तरह छीनी हुई गायें इन भाजपा कार्यकर्ताओं, बजरंग दल के कार्यकर्ताओं और शिव सेना से जुड़े हुए लोगों की गोशालाओं में पहुँच गयीं,
गायों की इन संख्या के आधार पर इन नेताओं ने गोसेवा आयोग से लाखों रुपया अनुदान लेना शुरू कर दिया,
खबर तो यह भी है कि छत्तीसगढ़ गोसेवा आयोग का अध्यक्ष अनुदान की राशि के हिसाब से कमीशन लेता है तब फ़ाइल पर दस्तखत करता है,
खैर, तो हुआ यह कि अनुदान के लिए खोली गई इन गोशालों के मालिकों को गायों की सेवा का कोई शौक तो था नहीं,
अनुदान के पैसों से इन नए-नए भगवा नेताओं ने महंगी महंगी गाड़ियां खरीद लीं, अब अगर चारे के लिए अनुदान के पैसों से गाड़ी खरीद ली जायेगी तो गाय को तो भूखा ही मरना पड़ेगा,
इन नयी गोशालाओं में बड़ी तादात में गायें भूखी मरने लगीं, गायों के मरने का यह सिलसिला रोशनी में पहली बार आया है,
मोदी के सत्ता में आने के बाद गाय के नाम पर निर्दोष मुसलमानों की हत्या का नया दौर शुरू किया गया, तो लोगों का ध्यान इस ओर गया कि गाय की रक्षा के नाम पर भाजपा के लोग खुद क्या कर रहे हैं,
मुझे लगता है कि भजपा की यह गाय की राजनीति गाय की जान की सबसे बड़ी दुश्मन है, गायों को गाय पालने वाले से छीन कर उन्हें पैसों के लालच में गोशाला में बंद करके मार डालना गायों के लिए सबसे नुकसान वाला साबित हो रहा है,
लेकिन किस्सा इतना ही नहीं है, गायों को इन गोशालाओं में रखने के बाद इन भाजपा कार्यकर्ताओं, बजरंग दल के कार्यकर्ताओं और शिव सेना से जुड़े हुए लोगों ने कसाइयों को बेचना शुरू कर दिया,
कई सारे मामले पकड़े गए हैं जिनमें गोशाला के संचालक कसाइयों को गाय सप्लाई करने के मामलों में पकड़े गये,
लेकिन भाजपा शासन होने के कारण मामले दबा दिए गये, जिन भूखी कमज़ोर गायों को कसाइयों ने भी खरीदने से इनकार किया उन्हें मछली चारा बनाने वाले व्यापारियों को बेच दिया गया,
अभी छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में भाजपा का शासन है तब तक यह मामले दबे रहेंगे, लेकिन जब सत्ता बदलेगी तब इन नकली गोरक्षकों के बहुत सारे दुष्कर्म सामने आयेंगे,
साभार: जन चौक
(लेखक- हिमांशु कुमार प्रसिद्ध गांधीवादी सामाजिक कार्यकर्ता हैं और ये उनके निजी विचार हैं)