राष्ट्रवादी देश के आदिवासियों, दलितों, औरतों और अल्पसंख्यकों के खिलाफ होते हैं: हिमांशु कुमार

मैं और मेरे मित्र प्रवीण सिंह कुछ युवकों से चर्चा कर रहे थे,

उनमें से एक युवक ने हम दोनों से कहा कि आप लोग जो बराबरी की बात करते हो वो लोग कम्युनिस्ट हो,

और जो कम्युनिस्ट हैं वो कहीं भी सफल नहीं हुए इसलिएबराबरी की बात मत कीजिये,

प्रवीण सिंह ने उस युवक से पूछा कि अगर आपसे कोई अपमानजनक व्यवहार करे तो आपको अच्छा लगेगा क्या ?

उस युवक ने जवाब दिया, नहीं, मुझे अच्छा नहीं लगेगा,

प्रवीण ने कहा कि आप अपने लिए तो समानता चाहते हो लेकिन दूसरे के लिए समानता की बात को नामुमकिन कह कर बात ख़त्म करना चाहते हो ?

लेकिन यह अब एक बड़ी समस्या है,

आम युवा वही भाषा बोल रहा है जो उग्र राष्ट्रवादी की होती है,

राष्ट्रवाद एक फर्जी नारा होता है,

राष्ट्रवाद असली समस्या से दूर ले जाने की चालाकी है,

हम आजकल रोज़ ही राष्ट्रवादियों की गाली गलौज सुनते हैं,

यह राष्ट्रवादी किन-किन बातों का विरोध करते हैं पहले उसके बारे में जानते हैं,

राष्ट्रवादी आदिवासियों के अपने जंगल पर अधिकारों का विरोध करते हैं,

राष्ट्रवादी कहते हैं कि राष्ट्र के विकास के लिए जंगल उद्योगपतियों को देने ही पड़ेंगे, इसलिए आदिवासी को जंगल पर अधिकार कैसे दिया जा सकता है ?

राष्ट्रवादी लोग दलितों द्वारा समानता के लिए चलाये जाने वाले आन्दोलन का विरोध करते हैं, वह कहते हैं कि यह दलित लोग हमारे धर्म को बदनाम कर रहे हैं और राष्ट्र को कमजोर कर रहे हैं,

राष्ट्रवादी लोग औरतों के समानता आन्दोलन का विरोध करते हैं, वे कहते हैं कि यह आन्दोलन तो विदेशी संस्कृति की नकल है हमारे धर्म में तो औरतों को देवी माना जाता है,

राष्ट्रवादी लोग मजदूरों की न्यायोचित मजदूरी की मांग के भी विरुद्ध हैं, वे कहते हैं कि यह लोग कम्युनिस्टों और विदेशी एजेंटों के कहने से देश का उत्पादन गिरा रहे हैं और राष्ट्र को कमजोर कर रहे हैं,

राष्ट्रवादी लोग झुग्गी झोपड़ी में रहने वालों को पसंद नहीं करते, राष्ट्रवादी लोग कहते हैं कि ये लोग चोर और नशेड़ी होते हैं इन्हें शहर से दूर भगाओ,

राष्ट्रवादी लोग छात्रों के आंदोलनों का विरोध करते हैं और कहते हैं कि छात्रों को आन्दोलन नहीं करना चाहिए और राजनीति में भाग नहीं लेना चाहिए बल्कि चुपचाप पढ़ाई करनी चाहिए,

राष्ट्रवादी अल्पसंख्यकों को पसंद नहीं करते, राष्ट्रवादी कहते हैं कि अल्पसंख्यक लोग विदेशी देश के लिए वफादार होते हैं और इनके कारण हमारा देश कमजोर हो रहा है,

इस तरह आप देख सकते हैं कि एक राष्ट्रवादी अपने देश के आदिवासियों, दलितों, औरतों, छात्रों और अल्पसंख्यकों के खिलाफ होता है,

राष्ट्रवादी को यह समझ में नहीं आता कि यह आदिवासी, दलित, महिलाएं, छात्र और अल्पसंख्यक ही तो राष्ट्र हैं,

असल में राष्ट्रवादी के दिमाग में ताकतवर बनने का एक फितूर होता है,

मुसोलिनी और हिटलर ने भी इटली और जर्मनी को सारी दुनिया से ज्यादा ताकतवर बनाने का वादा करके ही वहां के युवाओं को खूंखार और हत्यारा बनाया था,

और इस काल्पनिक ताकत का लालच दिखा कर मुसोलिनी और हिटलर ने अल्पसंख्यकों, बुद्धिजीवियों और अपने विरोधियों को मार डाला था,

और जब मुसोलिनी और हिटलर अपने विरोधियों की हत्याएं कर रहे थे तो नौजवान उनके लिए तालियां बजा रहे थे,

लेकिन अब उनके ही देशों के लोग मुसोलिनी और हिटलर का नाम नफरत से लेते हैं,

राष्ट्रवादी लोग नकली ताकत की चाहत में बड़े उद्योग का समर्थन करते हैं,

इस तरह ये राष्ट्रवादी लोग पूंजीपतियों के समर्थक बन जाते हैं,

राष्ट्रवादी लोग ताकतवर बनने की चाहत में हर चीज़ बड़ी बनाना चाहते हैं,

इसलिए राष्ट्रवादी कुटीर उद्योग, छोटे-छोटे काम धंधों को नफरत की नज़र से देखते हैं,

इसलिए अगर आप बड़े उद्योगपतियों द्वारा पर्यावरण को बर्बाद करने की बात करेंगे तो राष्ट्रवादी तुरंत आप पर हमला करेंगे और कहेंगे कि तुम विदेशी एजेंट हो और हमारे देश को कमज़ोर करना चाहते हो,

तो राष्ट्रवाद आपके दिमाग में एक नकली ताकत की ऐसी भूख पैदा कर देता है कि आप अपने देश की हर कमज़ोर और छोटी चीज़ को नपसंद करने लगते हैं,

इसलिए आप जब भी किसान, मजदूर, गांव की बात करेंगे तुरंत राष्ट्रवादी भक्त आकर आपको गालियां बकने लगेंगे,

इसीलिये हम राष्ट्रवाद को एक बीमारी मानते हैं,

हम जानते हैं कि राष्ट्रवाद की बीमारी से पीड़ित व्यक्ति अपने देश के हर नागरिक के विरुद्ध हो जाता है,

क्योंकि नागरिक तो कमज़ोर, दलित, आदिवासी, गरीब, अल्पसंख्यक या छात्र हैं,

और जैसे ही नागरिक अपनी तकलीफ की बात करता है वह कमज़ोर दिखाई देता है,

और कमजोरी राष्ट्रवादी को बर्दाश्त नहीं है,

राष्ट्रवादी चाहता है कि आप हमेशा बहुवचन में बात करें क्योंकि उससे ताकत का आभास होता है,

राष्ट्रवादी चाहता है कि आप ऐसा कहें कि इस महान राष्ट्र के महान और शूरवीर लोग, महाराणा प्रताप और शिवाजी के वंशज, राम और कृष्ण के उत्तराधिकारी लोग,

लेकिन आप तो कहते हैं कि हमारी जनता तकलीफ में है आदिवासी, ज़मीन पर आधिकार मांग रहे हैं, दलित समानता की मांग कर रहे हैं महिलायें बराबरी की मांग कर रही हैं, छात्र सस्ती शिक्षा की मांग कर रहे हैं,

तो आप जैसे ही जनता को वास्तविकता में देखने की कोशिश करते हैं आपसे राष्ट्रवादी चिढ़ जाता है,

इसी तरह राष्ट्रवादी लोग सेना के पक्ष में हैं लेकिन सिपाही की अच्छे भोजन की मांग के विरुद्ध हैं,

अगर सैनिक तनख्वाह बढ़ाने या सामान पेंशन की मांग करेगा तो राष्ट्रवादी उससे चिढ़ेगा,

राष्ट्रवादी को सेना बहुवचन में चाहिए एक एक सैनिक के रूप में नहीं,

क्योंकि सेना से ताकत का अहसास होता है जबकि एक एक सैनिक की तकलीफ देखने से तो कमजोरी का अहसास होता है,

इसलिए राष्ट्रवाद की राजनीति हमेशा राष्ट्र को ताकतवर बनाने, पड़ोसी देश को हरा देने, राष्ट्र को महान बनाने की बात करती है,

राष्ट्रवादी राजनीति कभी भी नागरिकों को उनके असली रूप में उनकी समस्याओं के साथ देखना ही नहीं चाहती,

यही राष्ट्रवाद की सबसे बड़ी समस्या है कि यह अपने ही नागरिकों की दुश्मन बन जाती है,

(नोट- यह लेख सियासत से पहले जनचौक पर प्रकाशित हो चुका है)