मिसाल: भाई ने किडनी देने से मना किया, तो हिन्दू शख्स ने किडनी देकर मुस्लिम ‘गुरु’ की जान बचाई

उत्तर प्रदेश: बरेली के रहने वाले 45 साल के मंसूर रफी की किडनी खराब होने के कारण उन्हें नियमित तौर पर डायलीसिस करवाना पड़ता था।

डॉक्टर में उन्हें किडनी बदलवाने के लिए कह दिया लेकिन उनके भाई ने उन्हें किडनी दान करने से साफ़ इंकार कर दिया और उनकी पत्नी का ब्लड ग्रुप उनसे अलग था, इसलिए वह भी मंसूर रफी को किडनी दान नहीं कर सकती थी।

लेकिन रफ़ी को किडनी दान करने के लिए उनके एक हिंदू दोस्त ने हौंसला दिखाया। रफ़ी ने इस बारे में अपने डॉक्टर को बताया कि एक दोस्त है जो किडनी दान कर सकता है।

पहले तो डॉक्टर कालरा ने कहा “ये लगभग नामुमकिन है। लेकिन बाद में उन्होंने बताया, अगर वो ये साबित कर सकते हैं कि उनका दान करने के इच्छुक शख्स से लंबा और गहरा भावनात्मक रिश्ता है तो थोड़ी गुंजाइश है।
जिसके बाद उन्होंने अपने 44 साल के दोस्त विपिन कुमार गुप्ता के साथ अपनी 12 साल पुरानी तस्वीरें दिखाईं। ये तस्वीरें दोनों के परिवार एक साथ अजमेर स्थित ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह की हैं।

अजमेर से वापस लौटते समय दोनों दोस्त परिवार समेत बालाजी मंदिर गये थे। कुछ तस्वीरों में दोनों के पड़ोसी भी दिख रहे थे जो दोनों की दोस्ती के गवाह हैं।

डॉक्टर कालरा ने बताया कि इस मामले को राज्य सरकार के संबंधित अधिकारियों को भेज दिया गया। जांच में भी ये पाया गया कि गुप्ता पैसों के लिए नहीं बल्कि अपनी मर्जी से किडनी दान करना चाहते हैं।
तीन बार किडनी दान करने की याचिका को खारिज करने के बाद कमेटी ने इस साल मई में आखिरकार उन्हें मंजूरी दी। इस महीने की शुरुआत में रफी को दान दी हुई किडनी लगा दी गई। रफी और गुप्ता दोनों ही पेशे से ड्राइवर हैं और दोनों की तनख्वाह लगभग बराबर है।
गुप्ता ने बताया कि रफ़ी मेरे गुरु हैं, जिन्होंने मुझे ड्राइविंग सिखाई है। जिससे मैं अपना और अपने परिवार का पालन-पोषण करता हूँ।

 

ये तो उसके बदले छोटा सा प्रतिदान है। रफ़ी का कहना है कि गुप्ता ने उन्हें नई जिंदगी दी है। गुप्ता कहते हैं कि वो रफी के कर्जदार थे।