शम्स तबरेज़, सियासत न्यूज़ ब्यूरो
लखनऊ: 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद देश में लव जिहाद और घर वापसी के नाम पर धर्म की आड़ में राजनीतिक हित साधने का नंगा नाच जारी है। उत्तर प्रदेश में भाजपा की सरकार के वजूद में आने के बाद धर्म और आस्था के नाम पर हिंसा में बढ़ोतरी हुई है। लेकिन उत्तर प्रदेश में कुछ ऐसे परिवार भी हैं जो धर्म से मुस्लिम हैं लेकिन उनके रिश्तेदार सैकड़ों साल से हिन्दू हैं। दोनों ही परिवार आज भी एक दूसरे के दुख—सुख में साथ निभाते है।
कुंवर नसीम रज़ा का मुस्लिम और राजपूत हिन्दू परिवारहम बात कर रहे हैं उत्तर प्रदेश के ग़ाज़ीपुर ज़िले में विख्यात दिलदार नगर की। दिलदार नगर निवासी कुंवर नसीम रज़ा खाँ वैसे तो मुस्लिम हैं, लेकिन इनके पूर्वज 350 साल पहले सकरवार वंशीय राजपूत हैं। नसीम रज़ा खाँ मुगलिया जागीरदार कुंवर नवल सिंह के दसवें वशंज है।कुंवर नवल सिंह जो बाद में मुहम्मद दीनदार खाँ के नाम से मशहूर हुए। इनका जन्म स्थली बिहार प्रांत के समहुता गांव में हैं। समहुता, कैमूर ज़िले के मोहनियां ब्लाक में स्थित सकरवार वंशीय राजपूत गांव है।
समहुता के राजपूत परिवार और नसीम रज़ा के पास मौजूदा फारसी दस्तावेजों के अनुसार समहुता में 52 बीघे में फैला एक एतिहासिक तालाब है जहां मुगल बादशाह औरंगज़ेब और उसकी फौज बंगाल से राजधानी लाहौर जा रही थी जब शाम होने को आया तो फौज ने समहुता के तालाब के किनारे खेमा लगा दिया।
समहुता गांव के कुछ बच्चे जब मुगल फौज की चहल कदमी को देखकर खेलते कूदते तालाब के पास पहुंचे जब कुछ बच्चे आपस में किसी बात को लेकर लड़ने लगे तब उनमें से लगभग 14—15 साल का एक राजपूत बच्चा आया और अपनी सूझबूझ के बल पर उसने बच्चों के झगड़े को शांत कराया। ये सारा नज़ारा मुगलिया फौज के सिपासालार नवाब गाज़िउद्दीन हैदर देख रहे थे। उस बच्चे की नेतृत्व क्षमता और दानिशमंदी से प्रभावित होकर ग़ाज़िउद्दीन हैदर ने फौरन उस बच्चे का नाम दानिश रख दिया और उस बच्चे को अपने पास बुलाया तथा बच्चे को अपने साथ चलने अनुरोध किया, जिसके बाद राजपूत बच्चा दानिश उनके साथ मुगल राजधानी लाहौर चले गए जहां शाही परिवार में उनकी परवरिश हुई और उनको दानिश खाँ के नाम से जाना जाने लगा।
बादशाह औरंगज़ेब, दानिश खां को इतना प्रेम करते थे कि उन्होने सन 1085 हिजरी में दानिश खां को अपने पुत्र के रूप गोद लिया ताकि उनको माता—पिता का प्यार मिल सके। आगे चल कर दानिश खां ने अपने पूरे परिवार को लाहौर बुलाया। दानिश खां, कुंवर लक्षराम सिंह के पुत्र थे जबकि कुंवर लक्षराम सिंह, कुंवर खर सिंह के पुत्र थे।
कुंवर लक्षराम सिंह के तीन पुत्र थे दानिश खाँ, कुंवर नवल सिंह और धरनी धर सिंह।
जब दानिश खां का पूरा परिवार लाहौर पहुंचे तब उन लोगों ने मुगल सल्तनत और मज़हबे इस्लाम से परिचय हुआ जिससे प्रभावित होकर परिवार वालों ने इस्लाम स्वीकार करने की इच्छा ज़हिर की तत्पश्चात दानिश खाँ के भाई बहनों और पुत्रों ने एक साथ ईमान लाए इस्लाम कुबूल किया।
ईमान लाने के बाद कुंवर नवल सिंह का नाम दीनदार सिंह, दूसरे भाई धरनीधर सिंह का बख्त बलंद खां और नवल सिंह के पुत्र कुंवर धीर सिंह का नाम बहरमंद खां नाम पड़ा।
कालांतर में बादशाह औरंगज़ेब ने कुंवर नवल सिंह उर्फ मुहम्मद दीनदार खां को राजा की उपाधी से सम्मानित करके ज़मानियां, चौसा और चैनपुर परगने का मंसबदारी दिया और जागीरदार संभालने लिए इन इलाकों में भेज दिया।
मुहम्मद दीनदार खां ने अखन्धा नामक स्थान पर आए उसे दीनदार नगर नाम से बसाया जो आज दिलदार नगर के नाम से प्रसिद्ध है।
मुहम्मद दीनदार खाँ और वशंजों का इतिहास दिलदार नगर के गांवों में चप्पे चप्पे पर मौजूद है और दूसरी सबसे खास बात ये है कि कुंवर नसीम रज़ा के पास सैकड़ो दस्तावेज मौजूद है जो सकरवार राजपूत और मुगलों के सम्बन्ध को दर्शाता है। समहुता में आज भी एतिहासिक धरोहर बरकार है मुगल बादशाह औरंगज़ेब के फौजदार शाहबाज खाँ समहुता के समीप एक गावं के रहने वाले थे, जिस कारण आज उस गांव का नाम शाहबाजपुर है, जो समहुता गांव का डाकघर भी है।
नसीम रज़ा का राजपूत खानदान आज भी समहुता में मौजूद है जो अक्सर दिलदार नगर आया करते हैं।
सपा सरकार में पर्यटन और कैबिनेट मंत्री रह चुके ओम प्रकाश सिंह ने नसीम रज़ा के प्रयासों से दीनदार खां के कोट पर दीनदार म्यूज़ियम का 30 दिसम्बर 2016 को शिलान्यास किया।
21 दिसम्बर 2005 को कुंवर नसीम रज़ा खां की शादी का वलीमा अर्थात बहुभोज में समहुता का पूरा सकरवार वंशीय राजपूत खानदान सम्मिलित हुआ था। आज भी दिलदार नगर में राजा दीनदार खाँ का टीला मौजूद है।
रविवार को सियासत ब्यूरो की टीम दिलदार नगर पहुंची और कुंवर नसीम रज़ा के साथ उनके राजपूत रिश्तेदारों के घर समहुता में पहुंचा। जहां शिवजी सिंह से मुलाकात हुई शिवजी सिंहए एक सेवानिवृत अध्यापक हैं।
शिवजी सिंह के बाद खानदान के दूसरे लोगों से मुलाकात हुई जिनमें सेवा निवृत प्रोफेसर सच्चीदानन्द सिंह, राम बचन सिंह, प्रोफेसर लक्षमण सिंह, प्राफेसर शिवशंकर सिंह और पत्रकार पारस नाथ सिंह से मुलाकात हुई। नसीम रज़ा का राजपूत परिवार काफी खुशहाल और सम्मपन्न हैं।
ये रक्त सम्बन्ध ही है जो 350 साल से ज़्यादा के रिश्ते को संजोए रखा है और दोनो परिवारों के बीच आज भी अटूट सम्बन्ध हैं।