5 सितंबर 2017 को शहर में हल्की बारिश हो रही थी, पत्रिका नाम के टैब्लॉइड की संपादक गौरीलंकेश उस सप्ताह के एडिशन का काम निपटा कर गांधी स्थित अपने दफ्तर कार से अपने घर जा रही थी. तेज तर्रार पत्रकार और एक्टिविस्ट गौरी लंकेश राजराजेश्वरी नगर के अपने घर में अकेले ही रहा करती थीं. मैसूर रोड पर ये इलाका कुछ समय पहले ही मिडिल क्लास के लोगों के रिहाइश के तौर पर विकसित हुआ है. उनके लिए दिन बहुत सामान्य सा बीता था. उन्हें ये अंदेशा भी नहीं रहा होगा कि ये उनका आखिरी दिन होने वाला था. हालांकि हिंदुत्व के आलोचक के तौर पर उन्होंने अपने लिए बहुतेरे दुश्मन बना लिए थे. नक्सलियों के लिए उनकी सहानुभूति ने उनकी इस समस्या को और बढ़ा दिया था.
व्यस्त मैसूर रोड से कार बाएं की ओर मोड़ कर वे आरआर नगर पहुंच गई और कार अपने इंडिपेंडेंट घर के सामने खड़ी करके घर खोलने जा रही थीं. अचानक मोटरसाइकल निकली और उसपर बैठा एक नकाबपोश उनकी ओर बढ़ा फिर उसने ट्रिगर दबा दिया. जख्मी गौरी अपने घर के अंदर कंपाउंड में घुस कर बचने के लिए घर का दरवाजा खोल ही रही थीं. वे खोल पाती इससे पहले दो बार उन्हें गोली मार दी गई. 55 साल की साहसी पत्रकार की अपने ही घर के दरवाजे के ठीक बाहर मौके पर ही मौत हो गई. हत्यारा बिना कोई सुराग छोड़े भाग गया. शाम के 8.40 बज चुके थे.
गौरी लंकेश के व्यक्तिगत मित्र माने जाने वाले मुख्यमंत्री सिद्धरमैया हतप्रभ रह गए. उन्होंने तुरंत उच्चस्तरीय जांच के आदेश दिए और इस हत्या की हर एंगल से जांच कराने के लिए एक विशेष जांच दल गठित कर दिया.
तेजतर्रार और अच्छे रिकॉर्ड वाले दो अधिकारी- अतिरिक्त पुलिस आयुक्त बी के सिंह और उपायुक्त एम एन अनुचेत को जांच का जिम्मा सौंपा गया. उन्होंने भी अपना काम अच्छे से किया और नक्सल थियरी को खत्म करने के बाद दक्षिणपंथी हिंदुत्व वाले एंगल पर जांच की. इसकी कुछ आलोचना भी की गई, लेकिन इससे उन्होंने अपना ध्यान नहीं भटकने दिया.
एसआईटी महीनों तक अंधेरे में तीर चलाती रही. उसे कोई सुराग नहीं मिला. लाखों टेलीफोन कॉल चेक की गईं. हजारों संदिग्धों से पूछताछ की गई. फिर भी कोई नतीजा नहीं निकला. बड़े अधिकारी परेशान हो उठे थे. जैसे भूसे के ढेर में सूई गायब हो गई थी और मिल नहीं रहे थी.
पिछली फरवरी में पहली बार एक सुराग मिला. नवीन कुमार उर्फ हॉटी मंजा नाम का एक बदमाश पकड़ा गया. उसे अवैध हथियार रखने के आरोप में पकड़ा गया था. सप्ताह भर की पूछ-ताछ के बाद वो टूटा और उसने गौरी लंकेश के हत्यारों की मदद करने की बात कबूली. हत्या की साजिश बहुत पुख्ता थी और हत्यारे एक दूसरे को भी बहुत कम जानते थे, लिहाजा एक दिक्कत अभी भी थी.
एमबी सिंह और अनुचेता की टीम ने तीन महीने तक एक दूसरे का लिंक को जोड़ते हुए उस हत्यारे को तलाश लिया जिसने गौरी लंकेश पर गोली चलाई थी. उसका नाम परशुराम वाघमारे है. 25 साल के इस हत्यारा का घर उत्तरी कर्नाटक के बीजापुर जिले के सिंधगी कस्बे में है. वो वहां पर एक छोटी सी दुकान चलाता है और उसके श्री राम सेने और सनातन संस्था जैसे कट्टरपंथी संगठनों से गहरे ताल्लुक हैं.
उसे बेंगलुरु सीआईडी मुख्यालय में बने एसआईटी दफ्तर लाकर आगे की पूछताछ की गई. उसका पूरा परिवार गलत तरीके से फंसाने की बात कह कर सारे आरोप नकारते रहे. पुलिस के मुतबिक उसने कुबूल किया कि उसने “किसी के कहने पर गौरी लंकेश को मारा, जो हिंदू भावनाओं को आहत कर रही थी.” उसने इस हत्या में शामिल दूसरों के भी नाम लिए.
पुलिस ये देख कर हैरान थी कि हत्यारों ने जांच एजेंसियों को भरमाने के लिए कितनी सावधानी बरती थी. एसआईटी का हिस्सा रहे एक अधिकारी के मुताबिक-“सभी आधे साक्षर भर थे. उनकी दुनिया बिल्कुल सिमटी हुई थी, लेकिन हत्या को बहुत ही अच्छे तरीके से प्लान किया गया. उन्होंने अपने पीछे कुछ नहीं छोड़ा और गिरफ्तारी से बचने के लिए हर तरीका अख्तियार किया. वे उसी रास्ते से गौरी के घर आए जिस पर कोई सीसीटीवी कैमरा नहीं था. तुरंत शहर छोड़ दिया. अपने को लो प्रोफाइल रखा. अपने व्यवहार को किसी भी तरह संदिग्ध नहीं दिखने दिया. उनकी सतर्कता से हम भी हैरान है.”
पुलिस को इसमें अब कोई संदेह नहीं है कि बाघमारे ने ही गौरी को मारा और इसकी साजिश साल भर पहले रच दी थी. वे इस हत्याकांड के मास्टर माइंड को पकड़ने के बाद वे फिर से चार्जशीट दाखिल करने की योजना बना रहे हैं.
श्रीराम सेने के संस्थापक प्रमोद मुतिलक ने गौरी के हत्यारों का अपने संगठन से किसी भी तरह का संबंध होने से इनकार कर दिया है. उनका दावा है कि वाघमारे आरएसएस का कार्यकर्ता है. आरएसएस ने भी इस तरह के आरोप से पूरी तरह इनकार कर दिया है.
कर्नाटक पुलिस के इस सावधानी से की गई जांच से पड़ोसी राज्य महाराष्ट्र में दाभोलकर और पनसारे की हत्या की जांच भी अपने तार्किक नतीजे तक पहुंच सकती है. वहां की पुलिस ने बेंगलुरू आकर साक्ष्य जुटाएं हैं और मान रही है कि इन हत्यारों में कोई संबंध है. उन्हें भी लंबे समय से ठंडे बस्ते में पड़े मामले की पर्तें खुल जाने की उम्मीद है.
उनका मानना है कि पुणे का एक इंजीनियर आमोल काले और अमित दिगवेकर ही गौरी और कुलबर्गी, पंसारे और दाबोलकर की हत्याओं का मास्टर माइंड हैं. अगर एसआईटी के आरोप आदालत में साबित होते हैं तो गौरी लंकेश को न्याय मिल सकेगा. उन्हें बराबर के तौर पर पसंद और नापसंद किया गया. लेकिन तकरीबन सभी मानते हैं कि वो बहादुर थी और उनकी प्रतिबद्धता जोरदार थी. अपने जीवन के आखिरी दिन तक अपनी शर्तों पर वे जीती रहीं.
कर्नाटक में पिछले साल भर में बहुत पानी बह गया है. गौरी लंकेश अब मुख्य खबरों में नहीं है और न ही वे बहस का कोई मुद्दा रह गई हैं. लेकिन उनके अपनों के लिए तो हमेशा के लिए नुकसान हो चुका है.