‘मैं मुसलमान हूँ और मेरी बहन हिन्दू है’

पिछले हफ्ते नैनीताल के एक मंदिर के कैंपस में दो मुस्लिम लड़कों की जान पर इस लिए बन गई कि उन्होंने अपनी एक क्लास फेलो जो कि एक हिन्दू लड़की थी के साथ वहां जाने की हिम्मत की थी, दो तो किस्मत अच्छी थी कि एक सिख सब इंस्पेक्टर वहां पहुंच गया और उन लडकों की जान बच गई , वरना धर्म के ठेकेदारों ने हत्या करने का अपना हुनर दिखाया दिया होता।

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दो दिन पहले कानपूर के स्टेशन पर एक मुस्लिम लड़के की इस लिए पिटाई की गई कि वह अपने मोहल्ले की एक हन्दू लड़की को अपनी स्कूटर पर बिठाकर स्टेशन तक छोड़ने के लिए चला गया था, कहा जाता है कि हिन्दू लड़की को स्टेशन पहुंचने की जल्दी थी और कोई सवारी नहीं मिल रही थी तो पड़ोस के एक दुकानदार ने उसकी मदद करने की हिम्मत कर दी, बस यही नेकी एसी थी जिसने उस लड़के को अस्पताल पहुंचा दिया।

इन घटनाओं के बाद में सोच रहा था कि क्या अब किसी हिन्दू महिला या हिन्दू लड़की के साथ मंदिर में जाना भी एक गुनाह हो गया है? क्या अब कोई मुसलमान इतनी हिम्मत करेगा कि किसी हिन्दू महिला के साथ मंदिर में जाए भले ही उसको वह अपनी बहन समझता हो।

मुझे इस लिए चिंता ज्यादा है कि मेरी एक बहन डॉक्टर रजनी सरीन एसी अहिं जिनको पचास साल पहले मेरे पिता ने उस समय बेटी बनाया था जब मेरे पिता लखनऊ के मेडीकल कॉलेज में हार्ट अटैक आने पर भर्ती हुए थे, उस जमाने में डॉक्टर रजनी मेडीकल कॉलेज में पढाई कर रही थीं।

जबसे मेरे पिता ने उनको बेटी कहा तब से वह हमारे लिए सगी बहन की तरह हो गईं, खुदा का शुक्र है कि पचास साल से हमारा और उनका रिश्ता वैसे ही कायम है जैसा कि दो सगे बहन भाइयों में होता है, मगर आज मैंने उनको इमेल भेजकर उन दोनों घटनाओं का ज़िक्र किया और उनसे पुछा कि क्या मैं अब आपके साथ किसी हिन्दू मंदिर जाने की हिम्मत कर सकता हूँ?