पिछले दो साल से आइबीएन-7 में ब्यूरो प्रमुख रहे कश्मीर के सबसे पुराने टीवी पत्रकारों में एक नसीर अहमद ने 29 अगस्त को संस्थान से यह कहते हुए इस्तीफा दे दिया कि पत्रकारिता करने की जगह उनके ऊपर फर्जी खबरें चलाने का दबाव संपादकों की ओर से बनाया जा रहा है। उन्होंने एचआर को भेजे अपने इस्तीफे में उन ख़बरों को भी गिनवाया है जिन्हें संस्थान ने प्रसारित नहीं किया।
गौरतलब है कि नसीर अहमद ने आइबीएन-7 में आने से पहले करीब 16 साल का वक्त ब्यूरो प्रमुख के रूप में ज़ी न्यूज़ में गुज़ारा है। वे घाटी के सबसे विश्वसनीय पत्रकारों में एक रहे हैं, लेकिन पिछले कुछ दिनों से उनकी ख़बरें आइबीएन-7 में रोकी जा रही थीं और फर्जी खबरें भेजने का उनके ऊपर दबाव बनाया जा रहा था।
मीडियाविजिल से करीब आधे घंटे चली विस्तृत टेलीफोन वार्ता में नसीर अहमद ने बताया कि बुरहान वानी की हत्या के बाद उनसे कहा गया था कि वे ऐसी स्टोरी भेजें जिसमें उसकी लड़कियों के साथ तस्वीरें हों और वानी को ऐय्याश दिखाकर बदनाम किया जा सके। उनहोंने ऐसा करने से जब इनकार कर दिया, तो उनकी जगह जम्मू के रिपोर्टर से यह स्टोरी करवायी गयी। वे कहते हैं, ”मेरी बीट पर जम्मू के रिपोर्टर ने स्टोरी की। न कोई बाइट, न सुरक्षा बलों से बातचीत, न किसी का वर्जन, स्टोरी चला दी गई।”
नसीर बताते हैं कि उमेश उपाध्याय के दौर में इस तरह की दिक्कत नहीं थी लेकिन कश्मीर को लेकर खबरों की सारी समस्या प्रबल प्रताप सिंह के आने के बाद शुरू हुई। उन्होंने कहा, ”एक समय था जब मैं ज़ी न्यूज़ में ब्यूरो प्रमुख हुआ करता था और प्रबल प्रताप रिपोर्टर की हैसियत से कश्मीर आते थे। मुझे कोई दुराग्रह नहीं है, लेकिन ज़मीनी सच्चाई को दिखाना तो हमारा काम है। अगर इस संस्थान में रहकर मैं पत्रकारिता नहीं कर सकता तो मेरी ज़रूरत क्या है।”
इस्तीफ़े के बाद कश्मीर की समाचार एजेंसी CNS से नसीर ने कहा है, ‘‘चैनल को कश्मीर में मारे जा रहे नागरिकों की कोई चिंता नहीं है। उसका अपना अजेंडा है और दुनिया में कश्मीर की छवि ख़राब करने के इरादे से तथ्यों के साथ छेड़छाड़ कर रहे है।’’
नसीर ने कहा, ‘‘मैं आश्चर्यचकित था जब चैनल ने श्रीनगर शहर के एक एटीएम गार्ड की स्टोरी एयर करने से मना कर दिया। गार्ड जब ड्यूटी से घर लौट रहा था, तभी सीआरपीएफ ने पैलेट गन से उसकी हत्या कर दी थी।’ इस स्टोरी को एयर करने की बजाय चैनल ने मुझसे कहा कि कश्मीर में किसी घायल जवान को ढूंढकर उसपर स्टोरी तैयार करो। मैं हमेशा चैनल को तथ्यों पर आधारित स्टोरी भेजता था लेकिन उसने हमेशा छेड़छाड़ करने के अलावा उसमें आतंकवाद का एंगल घुसाकर स्टोरी प्रसारित की।’’
नसीर ने बताया कि जब हालिया संकट के दौरान हेडलाइंस टुडे ने सैयद अली शाह गीलानी द्वारा पैसे देकर पत्थरबाज़ी कराए जाने वाली खबर चलायी, तो उनसे संपादकों ने कहा कि वे भी यह खबर भेजें। वे कहते हैं, ”मैंने साफ़ इनकार कर दिया और बताया कि वह वीडियो छह साल पुराना है।” ध्यान रहे कि हेडलाइंस टुडे पर गौरव सावंत द्वारा फर्जी तरीके से चलाए गए 2010 के उस वीडियो की हकीकत सबसे पहले मीडियाविजिल ने ही उजागर की थी जिसके बारे में बाद में राजदीप सरदेसाई ने खुद प्रेस क्लब के उस कार्यक्रम में पुष्टि की थी जो कश्मीरी प्रेस पर पड़े छापे के विरोध में आयोजित किया गया था।
नसीर कहते हैं कि आज कश्मीर की जनता के मन में मीडिया के प्रति काफी गुस्सा है। वे बताते हैं कि कश्मीर के किसी भी पत्रकार से आप बात कर लीजिए, तकरीबन सभी एक ही तरह की बात करेंगे। वे कहते हैं कि श्रीनगर के भीतरी इलाकों में जाने को उनसे कोई कहे तो वे इनकार कर देंगे क्योंकि अगर वे वहां गए, तो लोग उन्हें घेर लेंगे औश्र पूछेंगे कि तुम झूठी खबरें क्यों चलाते हो। वे बताते हैं कि दिल्ली से बरखा दत्त श्रीनगर आई थीं और किसी तरह वे संकटग्रस्त इलाकों में दौरा कर आईं, वरना वहां के टीवी पत्रकारों की हालत ये है कि वे अपनी ओबी वैन अपने दफ्तरों के बाहर ही खड़ी रखते हैं।
नसीर ने कहा, ”मैं बीस साल से पत्रकारिता कर रहा हूं। नब्बे के दशक में जब कोई चैनल नहीं हुआ करता था, तब हालत यह थी कि लोग बीबीसी छोड़कर ज़ी न्यूज़ देखते थे। मेरी एक पत्रकार के तौर पर विश्सनीयता है। अब उसे बचाए रखने के लिए इस्तीफा देने के अलावा और कोई रास्ता मेरे पास नहीं था।”
साभार : mediavigil.com