समय से पहले आम चुनाव कराने के लिए भाजपा पहले ही तैयार कर चुकी है अपना गणित

नई दिल्ली। अगला लोकसभा चुनाव अप्रैल-मई 2019 में प्रस्तावित है, लेकिन हाल में कुछ ऐसी राजनीतिक घटनाएं हुई हैं, जिससे अनुमान लगाया जा रहा है कि आम चुनाव समय से पहले हो सकते हैं। यह आकलन बहुत सारे फैक्टर पर आधारित है।

साल 2014 में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) मिशन -272 के चुनावी अभियान के आर्किटेक्ट राजेश जैन के हाल ही में एक लेख (12 कारणों से लोकसभा चुनाव समय से 100 दिन पूर्व हो सकते हैं) ने राजनीतिक पंडितों, विश्लेषकों और नेताओं की कल्पना को कब्ज़ा लिया है। जैन ने हालिया घटनाओं से छह कारण और छह संदर्भों की सूची दी है और एक साल पहले चुनाव कराने का आकलन राजेश जैन का है।

पहला और सबसे महत्वपूर्ण तर्क 2014 से भाजपा के चुनावी प्रदर्शन में गिरावट की प्रवृत्ति का है और इसलिए समय पूर्व चुनाव भाजपा के लिए लाभदायक हैं जबकि राजेश जैन के तर्क सहज और अवलोकनात्मक हैं। 2014 के आम चुनाव से चार साल में 15 राज्यों के चुनाव हुए। इन राज्यों के चुनावों में मतदाताओं की वरीयताओं से पता चला कि कोई भी भाजपा के संभावित प्रदर्शन को ठुकरा सकता है।

चुनाव सर्वेक्षण से बहुत भिन्न होता है, जहां मतदाताओं से परामर्शदाता को प्रश्नों का उत्तर देने की उम्मीद होती है, जो विभिन्न दोषों से जानबूझकर या अन्यथा से भरा होता है। हालांकि 2014 की जीत के बाद मतदाताओं के बीच भाजपा की लोकप्रियता को देखते हुए एक उचित तरीका है।

एक कारण भाजपा की राज्यवार स्थिति का है। अनुमान लगाए जा रहे हैं कि भाजपा गुजरात, राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और झारखंड में 40 से 50 सीटें हार सकती है। यूपी में भी 71 सीटों का फिर से हासिल करना मुश्किल है। पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु में भाजपा नगण्य है। भाजपा आंतरिक रूप से मानती है कि उसे 215 से 225 सीटें ही मिलेंगी। इसके अलावा अगर भाजपा को इस साल होने वाले राज्यों में नुकसान होता है, चुनाव हारती है, तो उन पर नकारात्मक असर पड़ सकता है।

 

2014 के आम चुनावों में भाजपा को लोकसभा में 543 सीटों में 282 सीटें मिलीं। 2014 के आम चुनाव के बाद भारत के 29 राज्यों में से 15 राज्यों में चुनाव हुए हैं। 2014 के चुनावों में भाजपा ने इन 15 राज्यों में 191 लोकसभा सीटों पर जीत दर्ज की, लेकिन बाद के राज्य के चुनावों में इसका प्रदर्शन 146 सीटों की संख्या के बराबर है, जो 45 सीटें कमहै। दूसरे शब्दों में 15 राज्यों के चुनावों के बाद भाजपा की लोकसभा सीटों की संख्या 237 है, जो कि 2014 की 282 सीटों के मुकाबले 45 कम है।

साल 2014 में भाजपा ने इन 15 राज्यों में 1,171 विधानसभा क्षेत्रों को जीता था, लेकिन बाद के राज्य चुनावों में यह केवल 854 विधानसभा सीटों पर जीत पाई जिसके कारण विधानसभा सीटों में लगभग एक तिहाई का नुकसान हुआ। यहां तक ​​कि वोट शेयर के मामले में 2014 के चुनावों में भाजपा ने इन 15 राज्यों में 39 फीसदी वोट हिस्सेदारी हासिल की, जो कि अब 29 फीसदी रह गई है।

इसके अलावा चार बड़े राज्यों- कर्नाटक, राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में इस साल के अंत में चुनाव हैं। साल 2014 के चुनावों में इन चार राज्यों में भाजपा की 79 संसदीय सीट थीं। अगर भाजपा की मौजूदा गिरावट का रुख जारी है तो भाजपा इन चार राज्यों में 20 अन्य लोकसभा सीटों पर हार कर सकती है।

 

सोर्स- www.boomlive.in