हिन्दू अगर धर्म बचाना चाहते हैं तो उन्हें जाति का विनाश करना होगा: अंबेडकर

जाति के विनाश यानी ‘एनिहिलेशन ऑफ कास्ट’ का मॉडल बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर का है। बाबा साहेब जातियों के बीच समरसता की बात नहीं करते। उनके मुताबिक जाति के ढांचे में ही ऊंच और नीच का तत्व है, इसलिए जातियां रहेंगी तो जातिभेद भी रहेगा।

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बाबा साहेब का मॉडल वंचितों को समर्थ और सक्षम बनाकर उन्हें इस काबिल बनाने का है कि वे जातिवाद को चुनौती दे सकें। अपने ऐतिहासिक भाषण एनिहिलेशन ऑफ कास्ट में वे सवर्ण हिंदुओं से आह्वान करते हैं कि अगर वे अपने धर्म को बचाना चाहते हैं तो उन्हें जाति का विनाश करना होगा और चूंकि जाति का स्रोत उनके धर्मग्रंथ हैं, इसलिए उनसे मुक्ति पानी होगी। बाबा साहेब के लिए जाति एक बीमारी है, जिसने हिंदुओ को जकड़ रखा है और इस बीमारी से बाकी लोग भी परेशान है। बाबा साहेब एक डॉक्टर की तरह सलाह देते हैं कि बीमारी ठीक करनी है तो ग्रथों से मुक्ति पा लो।

आपको बता दें कि देश भर से आने वाली दलित उत्पीड़न की खबरें बताती हैं कि दावा चाहे जो भी हो, लेकिन समाज में ऐसी कोई समरसता हो नहीं पाई है। जिन प्रदेशों में दशकों से भाजपा का शासन रहा और आरएसएस की मर्जी के मुताबिक शासन चला, वहां भी कोई वास्तविक समरसता नहीं आई है। जातिवाद वहां भी पूरी क्रूरता के साथ मौजूद है। जाति हिंसा और भेदभाव को खत्म करने में समरसता और एकात्मवाद का मॉडल पूरी तरह फेल साबित हुआ है। इसके अलावा राजकाज, न्याय, शिक्षा, नौकरशाही आदि संस्थाओँ में दलितों का हाशिए पर होना अब भी जारी है। दलितों के लिए देश अब भी एक हद तक ही सुधरा है।

हां, इस बीच एक बदलाव यह हुआ है कि दलितों ने पहले की तरह सब कुछ चुपचाप सह लेने से इनकार कर दिया है। दलित उत्पीड़न की ज्यादातर घटनाओं की अब दलित समाज में उग्र प्रतिक्रिया होती है। लोग ऐसे सवालों पर सड़कों पर आने लगे हैं। इसलिए देश भर में इस मुद्दे पर बवाल हो रहा है। इसे ही कुछ लोग जातिवाद का बढ़ जाना मानते हैं।

वहीँ संघ की कोशिश होगी कि अपने आक्रमण की धार किसी तरह मुसलमानों के खिलाफ मोड़ दी जाए, ताकि विराट हिंदू एकता कायम हो सके और दलितों या पिछड़ों के सवाल कहीं पीछे छूट जाएं।

महाराष्ट्र के पुणे के पास भीमा कोरेगांव में दलितों पर हमले और उसके बाद हुए के आंदोलन से संघ यानी आरएसएस काफी चिंतित है। यह संकेत मध्य प्रदेश के विदिशा में चल रही संघ के मध्य क्षेत्र की समन्वय बैठक में नजर आया, जहां संघ प्रमुख मोहन भागवत ने आह्वान किया कि काम करने वालों को मकर संक्रांति के दिन तिल और गुड़ देना चाहिए।

इस सिलसिले में उन्होंने आरएसएस ने हथकंडा अपनाते हुए घर में बर्तन साफ करने वाली, कटिंग करने वालों, कपड़े धोने वालों (पिछड़ा वर्ग) और जूते-चप्पल सुधारने वाले (दलित) से संपर्क करने और उन्हें घर बुलाने का अपील की। इससे पहले 2015 में संघ ने आह्वान किया था कि हिंदुओं की तमाम जातियों के कुएं, मंदिर और श्मशान एक होने चाहिए। आरएसएस के लिए जाति समस्या के समाधान का यही मॉडल है। यह समरसता है, यही एकात्मवाद है। तमाम जातियों के लोग, छोटे-बड़े सभी समरसता के साथ रहें, यही संघ चाहता है। जाति बनी रहे लेकिन समरसता के साथ।

(साभार- सबरंगइंडिया)