आंकड़े बयान करते मुस्लिम समुदाय में तलाक़ दर

लोकसभा में तीन तलाक से संबंधित विधेयक पारित किए जाने के बाद यह मामला सुर्खियों में है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहली बार इस मामले पर कहा कि कई सालों तक शोषण को बर्दाश्त करने के बाद मुस्लिम समाज की महिलाओं को अंततः इस परंपरा से खुद को मुक्त कराने का रास्ता मिल गया है। इसके विरोध में सांसद असदुद्दीन ओवैसी लोकसभा में हुई चर्चा में अपनी बात रख चुके हैं।

इसी मसले को लेकर सांसद मौलाना मोहम्मद असरारूल हक कासमी ने कांग्रेस पार्टी पर आरोप लगाया है कि पार्टी ने उनके आग्रह के बावजूद संसद में उनको बोलने की अनुमति नहीं दी। केंद्र सरकार और मीडिया भी तीन तलाक और बहुविवाह की समस्या को कुछ इस तरह परोस रहे हैं कि यह केवल मुसलमानों में ही होता है, जबकि वर्ष 2011 की जनगणना के आंकड़े कुछ और ही बयान करते हैं।

जनगणना 2011 के आंकड़ों के अनुसार भारत की कुल तलाकशुदा महिलाओं में 68 प्रतिशत औरतें हिंदू हैं, जबकि मुस्लिम तलाकशुदा महिलाओं की संख्या 23.3 प्रतिशत है। इससे यह भी पता चलता है कि 1000 में से 5.5 फीसदी हिंदू जोड़े अलग हो जाते हैं, उसमें वे महिलाएं भी शामिल हैं जिन्हें उनके पतियों ने अधर में लटका रखा है। इस सूची में वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पत्नी श्रीमती जसोदा बेन का नाम भी है।

इसलिए कानूनी तौर पर तलाक पाई हुई महिलाओं .8 की संख्या के साथ अलगाव की शिकार महिलाओं को भी जोड़ लिया जाए तो हिंदुओं के बीच ऐसी महिलाओं की संख्या 1000 में 7.3 हो जाती है।

इस तथ्य से यह बात सामने आती है कि हिंदुओं के बीच तलाक या अलगाव की दर मुसलमानों के बीच तलाक के दर से बहुत अधिक है जो कि जनगणना 2011 के अनुसार 1000 में केवल 5.63 है, जबकि मुसलमानों के बीच अलगाव या लटकाये रखने के मामले बहुत ही कम मिलते हैं, क्योंकि यहां तलाक या तीन के प्रारूप में पति-पत्नी के अलग होने का एक तरीका मौजूद है। तलाक की इस पूरी तस्वीर में धार्मिक और सामाजिक ताने-बाने की जटिलताएं नजर आती हैं।

2011 की जनगणना के आंकड़ों के अनुसार ईसाईयों और बौद्धों में तलाक और अलगाव की दर सबसे ज्यादा है जबकि जैनियों में यह सबसे कम है। इसके साथ ही हिंदुओं में मुसलमानों की अपेक्षा अलगाव की दर अधिक है। बौद्धों में साथी की मौत के कारण अलगाव सबसे ज्यादा है। इसके बाद ईसाईयों का नंबर आता है।

मुसलमानों की अपेक्षा हिंदुओं और सिखों में साथी की मौत की दर मुसलमानों की अपेक्षा है। मुसलमानों में जीवन प्रत्याशा दर सभी संप्रदायों में सबसे कम है। इसी का परिणाम है कि उनमें सबसे कम विधवा/विधुर लोग हैं। यह दर प्रति हजार शादीशुदा लोगों पर 73 की है। वहीं हिंदुओं में यह दर 88 है। वहीं ईसाईयों में यह दर 97 है और बौद्धों में यह 100 है।

भारत की आबादी में हिंदुओं का 80 प्रतिशत हिस्सा होता है, जबकि मुस्लिमों का 14.23 प्रतिशत हिस्सा होता है। आबादी के क्रमशः ईसाई, सिख, बौद्ध और जैन क्रमशः 2.3 प्रतिशत, 1.72 प्रतिशत, 0.7 प्रतिशत और 0.37 प्रतिशत हैं।