मुंबई: एक सर्वे के मुताबिक भारत की मशहूर जेलों में मुसलमानों का अनुपात उनकी आबादी के हिसाब से भी अनुपात से भी ज्यादा है और इस ओर खास ध्यान देने की जरूरत है। जेलों में क़ैद मुसलमानों की एक बड़ी संख्या कथित मामली अपराध के आरोपों के तहत सजाएं पूरी हो जाने के बावजूद भी क़ैद हैं, क्योंकि उनकी रिहाई के दस्तावेज़ तैयार कराने के लिए उनके पास वकील को फीस अदा करने के पैसे नहीं हैं।
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इसी तरह कैदियों की एक बड़ी संख्या एसी भी है जिन्हें जमानत पर रिहाई मई गई है, लेकिन जमानत की रकम अदा न करने की स्थिति में उन्हें क़ैद की मुश्किलें बरदाश्त करनी पड़ रही है। उनके अलावा ऐसे भी मुस्लिम नौजवान जेल के सलाखों के पीछे क़ैद हैं जिन्होंने सजाएं पूरी कर ली हैं, लेकिन जुर्माने की राशि अदा न कर पाने पर अभी तक जेल में हैं।
देश में आतंकवाद के आरोपों के तहत मुस्लिम नौजवानों के मुकदमों की पैरवी करने वाली संगठन जमीअत उलेमा ए महाराष्ट्र ने इस ओर पहल शुरू कर दी है अरु पहले चरण में महाराष्ट्र की विभिन्न जेलों से आरटीआई के माध्यम से ऐसे कैदियों का विवरण माँगा है जो मामूली अपराध के आरोप में जेल की मुश्किलें झेलने को मजबूर हैं।