भीमा कोरेगांव हिंसा और नक्सल कनेक्शन के मामले में गिरफ्तार पांच वामपंथी विचारक और सामाजिक कार्यकर्ताओं को सुप्रीम कोर्ट ने ट्रांजिट रिमांड या कस्टडी पर देने से इनकार कर दिया. सुप्रीम कोर्ट ने आज सुनवाई के दौरान कहा कि सभी पांच लोगों को अगली सुनवाई तक हाउस अरेस्ट पर रखा जाएगा. महाराष्ट्र सरकार ने नज़रबंदी की बात मान ली है. साथ ही कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार से 5 सितंबर तक जवाब मांगा है. इस पर अगली सुनवाई 6 सितंबर को होगी. सुनवाई के दौरान अदालत ने कहा कि असहमति लोकतंत्र का सेफ्टी वॉल्व है, अगर असंतोष को दबाया गया तो प्रेशर कुकर फट सकता है.
Supreme Court observes, 'dissent is the safety valve of democracy. If dissent is not allowed then the pressure cooker may burst'. #BhimaKoregaon
— ANI (@ANI) August 29, 2018
वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि कल पूरे देश में कई शहरों से 5 बहुत ही अहम मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को पुणे पुलिस ने गिरफ्तार किया. 20-25 साल से पिछड़े, दबे-कुचलों के लिए ये लोग काम करते रहे हैं. इस मामले में रोमिला थापर, प्रभात पटनायक, सतीश देशपांडे, देवकी जैन और माया दारूवाला ने जनहित याचिका दायर की, जिस पर आज शाम 4.30 बजे सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की. चीफ जस्टिस की खंडपीठ ने भारत सरकार और महाराष्ट्र सरकार से जवाब मांगा है. साथ ही सभी पांचों आरोपियों को पुलिस कस्टडी में नहीं भेजा है. केस की सुनवाई के दौरान जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि सरकार ऐसे लोगों को गिरफ्तार कर रही जो दूसरे लोगों के अधिकार के लिए अपने अधिकार का उपयोग कर रहे हैं, ऐसे लोगों को गिरफ्तार किया जाना लोकतंत्र के लिए बहुत खतरनाक है.
वहीं, केंद्रीय मंत्री हंसराज अहीर ने कहा कि पुलिस का मनोबल गिराना सही नहीं है. भीमा कोरेगांव हिंसा हमारे देश और संविधान के लिए बड़ा धक्का था. देश में जाति की आग फैलाने की साजिश खुल चुकी है, पुलिस कार्रवाई कर रही है. अदालतें हैं और उन्हें लगता है कि आरोपी निर्दोष हैं तो वे जमानत की मांग कर सकते हैं.