संयुक्त राष्ट्र अधिकार विशेषज्ञ मणिपुर राज्य में सुरक्षा बलों द्वारा कथित हत्याओं की जांच पूरी करने के लिए भारत में अधिकारियों से आग्रह कर रहे हैं, क्योंकि अधिकारी मामले में पूछताछ के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित समयसीमा को पूरा करने में नाकाम रहे हैं।
विशेषज्ञों ने कहा कि हम बेहद चिंतित हैं कि देरी जानबूझकर की गई है जो अनुचित है। साल 2012 में, सिविल सोसाइटी समूहों ने सुप्रीम कोर्ट में मणिपुर की कथित असाधारण हत्याओं के 1,500 से अधिक मामलों को प्रस्तुत किया था।
कई मामलों में, सुरक्षा बलों और सशस्त्र समूहों या व्यक्तियों के बीच फायरिंग के कारण पुलिस द्वारा मौतें दर्ज की गई थीं। हालांकि, परिवारों ने आरोप लगाया कि मामले ‘फर्जी मुठभेड़’ के थे और लोगों को जानबूझकर मारा गया था।
2013 में, सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त आयोग ने चुने गए छह मामलों की जांच की और सभी मामलों में पाया कि सुरक्षा बलों के निष्कर्ष वास्तविक नहीं थे और किसी भी मृत व्यक्ति का आपराधिक रिकॉर्ड नहीं था।
केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को कई अन्य मामलों में जांच करने का आदेश दिया गया था। विशेषज्ञों ने कहा, ‘सुप्रीम कोर्ट ने कई मामलों में जांच के लिए तीन बार समय सीमा तय की है और इन समय सीमाओं को पूरा नहीं किया गया है।
विशेषज्ञों ने कहा, यह अस्वीकार्य है कि सीबीआई इन समय सीमाओं को पूरा करने में नाकाम रही है। उन्होंने चिंता व्यक्त की कि अदालत के आदेश केवल कुछ मामलों में लागू होते हैं।
भारत सरकार को संभावित रूप से गैरकानूनी हत्याओं के सभी आरोपों में तत्काल, प्रभावी और पूरी तरह से जांच सुनिश्चित करने का दायित्व है, और ऐसा करने में विफलता अंतरराष्ट्रीय दायित्वों का उल्लंघन है।
उन्होंने सूचना के बारे में गंभीर चिंताओं को भी व्यक्त किया कि मामलों से जुड़े मानवाधिकार रक्षकों ने अधिकारियों द्वारा उत्पीड़न का सामना किया था और अज्ञात व्यक्तियों द्वारा भी हमला किया गया था। विशेषज्ञों ने अपनी चिंताओं को व्यक्त करने और आगे की जानकारी के लिए भारत सरकार को लिखा है, लेकिन अभी तक एक प्रतिक्रिया प्राप्त नहीं हुई है।