ASSAM : नागरिकता की जांच में वर्तनी की एक गलती पूरे परिवार को बर्बाद कर सकती है

धुबरी। रियाजुल इस्लाम का कहना है कि उन्हें 1951 में पारिवारिक दस्तावेज तैयार करना था ताकि वह साबित कर सके कि वह एक भारतीय हैं और अवैध बांग्लादेशी नहीं हैं। लेकिन जुलाई में जारी नागरिकों की एक मसौदा सूची में उनका और उनकी मां का नाम नहीं था, कुल मिलाकर करीब 4 मिलियन लोगों का नाम इस सूची में नहीं था।

असम के पूर्वोत्तर राज्य में 33 वर्षीय इस्लाम का कहना है कि वह और उनकी मां के पास भारतीय होने को साबित करने के लिए कोई और दस्तावेज नहीं है, हालांकि उनके पिता और उनके परिवार में कई अन्य नागरिकों के नाम राष्ट्रीय रजिस्टर में शामिल किए गए है।

बांग्लादेश के साथ सीमा के नजदीक धुबरी के छोटे शहर में साक्षात्कार में इस्लाम ने कहा कि यदि मेरे पिता एक भारतीय नागरिक हैं तो मैं कैसे नहीं हूं? उन्हें और क्या सबूत चाहिए? इस तरह की घटनाएं अब असम में आम है।

सरकार ने सूची से बाहर चार लाख लोगों का ब्योरा नहीं दिया है लेकिन इसमें ज्यादातर राज्य में रहने वाले अल्पसंख्यक बंगाली भाषी मुस्लिम हैं, जिसकी कुल आबादी 33 मिलियन है।

रॉयटर्स द्वारा उनके दस्तावेजों की समीक्षा के मुताबिक, उनमें से कई अशिक्षित और गरीब हैं, और कुछ नागरिकों के साक्ष्य के लिए दिए गए दस्तावेजों में उनके नाम या उनकी उम्र में हुई एक गलती के पीड़ित हैं।

बीजेपी के असम प्रवक्ता, बिजान माजजन ने कहा कि नागरिकता अभियान के पीछे कोई धर्म आधारित उद्देश्य नहीं था। हालांकि, मोदी के वरिष्ठ कैबिनेट सहयोगियों में से एक अरुण जेटली ने इस महीने एक फेसबुक पोस्ट में कहा था कि एनआरसी जरूरी था।

असम एनआरसी मसौदे में कई हिंदुओं को भी शामिल नहीं किया गया है, लेकिन पिछले सप्ताहांत भाजपा प्रमुख अमित शाह ने बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से सभी गैर-मुस्लिम शरणार्थियों को नागरिकता का आश्वासन दिया था।

यह स्पष्ट नहीं है कि नागरिकों की अंतिम सूची से बाहर किए गए लोगों के साथ क्या होगा लेकिन वकीलों का कहना है कि वे हिरासत शिविरों में समाप्त हो सकते हैं, या कम से कम नागरिकता अधिकारों और सरकारी सब्सिडी से वंचित रह सकते हैं।

असम के विदेशी ट्रिब्यूनल में अवैध आप्रवासन के दर्जनों मामलों को संभालने वाले एक वकील अमन वाडुद ने कहा कि ऐसी गलतियों से नागरिकता में कमी हो सकती है।