VIDEO : भारत में पक्षियों के लिए का अनोखा अस्पताल जहां इसका इलाज़ मुफ्त होता है

नई दिल्ली : अक्सर हमें गलियों, सड़कों आदि पर घायल पक्षी नजर आते हैं, लेकिन हम उन मासूम पक्षियों को देखते हुए आगे बढ जाते हैं। इसका एक बहुत बड़ा कारण जानकारी का अभाव होना है। हम बेज़ुबान पक्षियों के लिए चाहकर भी कुछ नही कर पाते। दिल्ली के चांदनी चौक मे लालकिले के ठीक सामने बना पक्षियों का धर्मार्थ चिकित्सालय घायल पक्षियों को एक नया जीवन दे रहा है। जहां रोज़ाना लोग आते हैं और घायल पक्षियों को यहां छोड़ जाते हैं। ये लोग दिल्‍ली के हर कोने से आते हैं। ‘सेव द बर्ड मिशन’ को पूरी तरह कामयाब बनाने के लिए यहां दिन-रात पक्षियों को भर्ती किया जाता है। दिल्ली में लगभग 80 साल से चल रहे इस अस्पताल में छोटे पक्षियों से लेकर बाज़, कौए, चील जैसे पक्षियों का इलाज किया जा रहा है। इलाज के बाद पक्षियों को पिंजरे में कैद नहीं रखा जाता। इसके बजाय उन्‍हें खुले आसमान में एक नई उड़ान भरने के लिए छोड दिया जाता है।

नई दिल्ली के चैरिटी पक्षी अस्पताल घायल और बीमार पक्षियों के मुफ्त उपचार के लिए जाना जाता है। यह अस्पताल दिल्ली और पड़ोसी राज्यों में पक्षी प्रेमियों के बीच लोकप्रिय है। अस्पताल अक्सर बीमार और घायल पक्षियों को प्राप्त करता है जिन्हें बाद में दवा और पौष्टिक आहार दिया जाता है। इलाज के बाद सप्ताह में एक बार पक्षियों को मुक्त कर दिया जाता है। अस्पताल एक दिन में 60 पक्षियों को लेता है और खरगोश जैसे जानवरों का भी इलाज करता है।

चांदनी चौक में लालकिले के सामने बना पक्षियों का यह धर्मार्थ चिकित्‍सालय अपने आप में अनोखा है। यहां हर प्रकार के पक्षियों का इलाज नि:शुल्‍क किया जाता है। दिल्ली के पहले एकमात्र धर्मार्थ पक्षी अस्पताल की स्थापना 1929 में लच्छो मॉल गोटेवाला ने एक कमरे के मकान से की थी। उस समय इसमें केवल कुछ पक्षियों का इलाज ही संभव हो पाता था। कुछ समय बाद 1952 में श्री दिगम्बर जैन लाल मंदिर के पीछे इसे शिफ़्ट किया गया। इस काम में उस समय दिल्ली के कई जाने माने कारोबारियों ने उनकी मदद की। यह अस्पताल पक्षियों की देखभाल, उन्हें होने वाली बीमारियों और उन्‍हें होने वाली अन्‍य सभी प्रकार की शारीरिक क्षतियों के उपचार के लिए जाना जाता है।

यहां के डॉक्‍टर गंभीर रूप से घायल पक्षियों को भी ठीक करके वापस आसमान में उड़ने के लिए छोड़ देते हैं। दिल्ली के आसमान में उड़ने वाले कबूतर, कौए, चील, तोते, गौरेया, आदि पक्षियों का यहां इलाज होता है। अस्पताल के डॉक्‍टर सुनील भट्ट के अनुसार रोजाना यहां 20 से 25 पक्षियों को लाया जाता है। फिर उनके उपचार की पूरी जिम्मेदारी डॉक्‍टर और अस्पताल के कर्मचारियों की होती है।

यह पूरी तरह चेरिटेबल संस्था है, जिसमें कोई भी बीमार पक्षियों को ला सकता है। पक्षियों को जमा कराने के बाद जमाकर्ता को एक रसीद दी जाती है ताकि उसे लाने वाले के पास एक सबूत रहे कि अस्पताल में पक्षी सुरक्षित है। पक्षी को इलाज करने के बाद धीरे-धीरे उसे इस लायक बनाया जाता है कि वो अपने दैनिक काम कर सके। गंभीर रूप से घायल पक्षियों को ठीक होने में ज्यादा वक्त लग जाता है और सामान्‍य रूप से घायल पक्षियों को ठीक होने के एक-दो दिन बाद आज़ाद कर दिया जाता है। डॉक्‍टर सुनील के अनुसार कुछ पक्षी वापस लौट जाते हैं और कुछ यहीं के होकर रह जाते हैं।

डॉक्‍टर कहते हैं, “आज के वक्त में जब इंसानों के रहने के लिए जगह कम पड़ रही है, तो इन छोटे पक्षियों को कौन पूछेगा। वैसे भी दिल्ली के आकाश से पक्षियों का कम होना, एक गंभीर समस्या मानी जाती है। पहले पक्षियों का शिकार किए जाने से उनकी संख्‍या घट रही थी और आज प्रदूषित वायु से उन्‍हें नुकसान हो रहा है। उनके प्रजनन में इसका प्रभाव पड़ रहा है। जगह की कमी के कारण उन्हें अपने घोंसले बनाने के लिए उपयुक्त जगह नहीं मिल पाती है। दिल्ली के अधिकांश पक्षियों को घरों की छतों से, चलते पंखों से या बिजली के तारों में बहते करंट से नुकसान पहुंचता है। राहगीर उन्हें यहां लाते हैं। उनकी हालत को देखकर उन्हें यहां भर्ती किया जाता है। जिस पक्षी को कम नुकसान होता है, उसे जल्द आज़ाद कर देना यहां की परम्परा है।” डॉक्‍टर सुनील के अनुसार रोज़ाना 4 से 5 पक्षियों को छत से खुले आकाश में छोड़ा जाता है। वहां से वो या तो अपने पहले की जगहों को लौट जाते हैं या यहां वापस आ जाते हैं। जो वापस आते हैं, उनके लिए अस्पताल के छत में दाने-पानी की पूरी व्यवस्था की गई है।

डॉक्टर सुनील के अनुसार अन्य पक्षियों की तुलना में घायल कबूतर यहां ज्‍़यादा लाए जाते हैं। पुरानी दिल्ली में लोग शौक़िया तौर पर पाले जाते हैं। साथ ही कबूतरों से सम्बन्धित अनेक खेल भी लोगों के बीच मशहूर है। अस्पताल की छत में पक्षियों की एक धर्मशाला भी है। यहां पक्षियों के लिए हर समय दाना पानी मौजूद रहता है। आकाश में उड़ने वाले पक्षी यहां बैठते हैं, सुस्ताते है, दाना खाते हैं, पानी पीते है और अपनी मंज़िल की ओर उड़ जाते हैं। इसके अलावा, यहां से स्‍वस्‍थ होने वाले वे पक्षी, जो ये जगह छोड़कर जाना नहीं चाहते, उनके लिए ओ.पी.डी की व्‍यवस्‍था भी इस अस्‍पताल में मौजूद है।