हिंसा और गौ प्रेम का असर सीधे किसान और खेती पर

नई दिल्ली : गाय बचाने के नाम पर शुरू हुई भीड़ की हिंसा से एक नया खतरा पैदा हो गया है, जिसका असर कानून-व्यवस्था पर नहीं बल्कि सीधे किसान और खेती पर पड़ सकता है। हिंसा के खौफ का सीधा असर गायों की खरीद-फरोख्त पर पड़ता दिख रहा है। गाय पालने वालों के सामने बड़ा सवाल यह है कि एक निश्चित अवधि के बाद जब गाय दूध देना बंद कर देती है, तब वे उसका क्या करें/ सिर्फ चारा खिलाने के लिए उसे पालना उनके लिए संभव नहीं होगा।

बरेली के इंडियन वेटरिनरी रिसर्च इंस्टिट्यूट के डायरेक्टर डॉ आरके सिंह कहते हैं कि अगर इसी तरह के हालात बने रहे तो लोग गाय पालने से किनारा करने लगेंगे। इसका सीधा असर देश की खेती पर पड़ेगा। एक तो लोगों को जैविक खाद के लिए गोबर नहीं मिलेगा और दूसरा गाय नहीं होगी तो खेतों की जुताई के लिए बैल कहां से आएंगे।

कृषि विशेषज्ञ और समाज विज्ञानी भारत डोगरा कहते हैं कि मिट्टी की क्वॉलिटी को बेहतर बनाए रखने के लिए जैविक खाद बहुत जरूरी होती है। देश आज रासायनिक उर्वरकों से खेती को हो रहे नुकसान को भुगत रहा है। दूसरी चीज यह कि देश में आज भी छोटी जोतों की संख्या बहुत ज्यादा है। इन खेतों में और खासकर पहाड़ी इलाकों में ट्रैक्टर के जरिए खेतों की जुताई मुमकिन नहीं है। अगर बैल नहीं होंगे तो यहां जुताई कैसे होगी।

इसका सीधा असर अनाज उत्पादन पर ही नहीं, किसान की आमदनी पर भी पड़ेगा। साथ में दूध की जो किल्लत होगी, वह अलग। दोनों विशेषज्ञों के मुताबिक, यह सब तब है जब सरकार जैविक खेती पर जोर दे रही है। ऐसे में अगर लोगों ने हिंसा के डर से गोवंश को पालना बंद कर दिया तो सरकार की योजना को ग्रहण लग जाएगा। इसका असर पर्यावरण पर भी पड़ेगा।

देश में गोवंश की संख्या 30 करोड़ के आसपास है। देश को आज दूध उत्पादन में दुनिया का पहले नंबर का देश बनाने में गायों का भी बड़ा योगदान है। भारत में एक गाय की औसत उम्र नस्ल के हिसाब से 15 से 20 साल होती है। देसी नस्ल की गाय आमतौर पर 10-12 साल तक दूध देती है, जबकि संकर नस्ल की गाय सात-आठ साल तक।