एन्युअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट (असर)का ख़ुलासा, पढाई में पीछे , मोबाइल चलाने में आगे

माना जाता है कि पैसों के हिसाब-किताब में महिलाएं ज्यादा सतर्क होती हैं। आमतौर पर देखा भी गया है कि पुराने जमाने की कम पीढ़ी-लिखी महिलाएं फटाफट पैसों का हिसाब कर लेती थीं। लेकिन देहरादून में 14 से 18 आयु वर्ग के लड़के और लड़कियों हुए सर्वे में कुछ चौंकाने वाले परिणाम सामने आए हैं। आइए जानते हैं रिपोर्ट में क्या कुछ खुलासा हुआ है।

14 से 18 वर्ष आयु वर्ग के छात्रों पर एन्युअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट (असर)-2017 में कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। सर्वे में रुपये की गिनती करने में लड़कियां लड़कों से कमजोर निकली। 84 फीसदी लड़कों ने सही रकम जोड़ी, जबकि 32 फीसदी लड़कियां रुपये गिनने में गड़बड़ी कर बैठी। वजन जोड़ने में भी लड़कों के मुकाबले लड़कियों की गणित काफी कमजोर रही। 63 फीसदी लड़कों ने सही वजन जोड़ा तो 62 फीसदी लड़कियां सही वजन नहीं जोड़ पाई। बाजार में सामान पर मिलने वाले डिस्काउंट भी छात्रों से जोड़ घटना करवाया गया। इसमें 47 फीसदी छात्रों ने सही जवाब दिया। जबकि 28 फीसदी छात्राएं ही डिस्काउंट का गणित सही बता पाई।

देहरादून से 50 फीसदी छात्र गणित में ‘जीरो’ 

असर की सालाना रिपोर्ट ने युवा होती पीढ़ी के बीच गणित के साथ ही व्यवहारिक समझ और बुनियादी पढ़ाई को लेकर मौजूदा स्थिति की ओर ध्यान खींचा है। आमतौर पर असर प्राइमरी शिक्षा को लेकर अपनी रिपोर्ट तैयार करता है, लेकिन इस बार युवा होती पीढ़ी पर इसे फोकस किया गया। सर्वे में 14 से 18 आयु वर्ग के छात्रों से गणित के मामूली सवाल पूछे गए। 80 फीसदी छात्र 872 में सात का भाग नहीं दे पाए।

जोड़-घटाना और गुणा-भाग में भी छात्र कमजोर 

देहरादून में इस आयु वर्ग के 50 फीसदी छात्र भाग का सवाल हल नहीं कर पाए। घटाने के सवाल का उत्तर सिर्फ 20 फीसदी ही दे पाए। जबकि 10 से 99 के बीच पूछे गए अंकों को 70 फीसदी सही नहीं पहचान पाए। घटाने के सवाल को जहां 17 फीसदी छात्रों ने ही सही किया, तो 22 फीसदी छात्राओं ने इसका सही जवाब दिया। अंग्रेजी के वाक्य पढ़ने में भी छात्र कमजोर निकले। 28 फीसदी सही तरीके से अंग्रेजी नही पढ़ पाए। असर से जुड़े मयंक लव और हिमांशु बिष्ट ने बताया कि यह सर्वे दून यूनिवर्सिटी के छात्रों के साथ मिलकर बीते अक्तूबर से नवंबर के बीच किया गया।

देहरादून के 1072 छात्र-छात्राओं पर हुआ सर्वे 

देहरादून जिले के कुल 56 गांव के 14 से 18 वर्ष आयु वर्ग के छात्रों पर यह सर्वे हुआ। इनमें असर की टीम 862 घरों तक पहुंची और सर्वे में 1077 छात्रों को शामिल किया गया। खास यह रहा कि शहरी क्षेत्र को छोड़कर चकराता, विकासनगर, सहसपुर, डोईवाला के साथ ही देहरादून और ऋषिकेश से लगे गांवों के छात्रों को भी इस सर्वे में शामिल किया गया।

मोबाइल प्रयोग में आगे 

सर्वे में यह सामने आया कि दून के गांवों में 14 से 18 आयु वर्ग के 73 फीसदी मोबाइल प्रयोग करते हैं। इंटरनेट सिर्फ 50 फीसदी उपयोग करते हैं, जबकि कंप्यूटर प्रयोग करना 35 फीसदी को ही आता है।

डिजिटल पेंमेंट में पीछे

सर्वे में पाया गया कि 14 से 18 आयु वर्ग के 66 फीसदी के पास बैंक अकांउट है। इनमें 48 फीसदी अपने खातों का खुद संचालन करते हैं। हालांकि एटीएम का प्रयोग सिर्फ 21 फीसदी करते हैं। जबकि 10 फीसदी ही इंटरनेट बैंकिंग का प्रयोग करते हैं। हालांकि राष्ट्रीय स्तर पर इस आयु वर्ग के सिर्फ पांच फीसदी ही इंटरनेट बैंकिंग का प्रयोग करते हैं, जो देहरादून के औसत से कम है।

सही समय पर नहीं लेते व्यावसायिक प्रशिक्षण 

असर सर्वे रिपोर्ट में वोकेशनल ट्रेनिंग को लेकर भी सवाल पूछे गए। जिसमें यह बात सामने आई कि 14 से 16 आयु वर्ग के दो फीसदी ही वोकेशनल ट्रेनिंग लेते हैं। 17 से 18 आयु वर्ग में 10 फीसदी पाया गया। यानी स्कूली पढ़ाई के दौरान छात्र वोकेशनल ट्रेनिंग नहीं लेते हैं।

लैब और कंप्यूटर कक्ष तक नहीं 

देहरादून। सरकारी स्कूलों में बेहतर सुविधाओं के दावों की पोल राजधानी देहरादून में ही खुल रही है। स्कूलों में कक्षा कक्षों की कमी बनी हुई है। विज्ञान लैब और कंप्यूटर कक्ष तक नहीं है। फर्नीचर के अभाव में बच्चे नंगे फर्श पर बैठने को मजबूर हैं। मानक से अधिक शिक्षक होने के बावजूद छात्र संख्या घट रही है। असर रिपोर्ट जारी होने के बाद मंगलवार को ‘हिन्दुस्तान’ ने राजधानी देहरादून से सटे कुछ स्कूलों की पड़ताल की। बेसिक स्कूल परेड ग्राउंड में दो शिक्षिकाएं हैं। पिछले साल इस स्कूल की छात्र संख्या 52 थी, जो इस साल घटकर 47 तक आ गई है। इसमें भी पांच बच्चे लंबे समय से स्कूल नहीं आ रहे। बच्चों के खेलने के लिए मैदान तक नहीं है।