मिलिए, मुल्क़ की हवाओं में मोहब्बत घोलने वाले IPS क़ैसर ख़ालिद से

नफ़रत को मोहब्बत से ही जीता जा सकता है। मुल्क़ की हवा में नफ़रत घोलने वालों को क़ैसर ख़ालिद जवाब दे रहे हैं। क़ैसर खालिद कोई सामाजिक कार्यकर्ता नहीं है ना ही किसी एनजीओ से जुड़े हैं वो एक आईपीएस ऑफिसर हैं जो अपनी ड्यूटी के साथ मुल्क़ में अमन चैन फ़ैलाने के मिशन में लगे हैं।

बिहार के अररिया ज़िला में 1971 में जन्मे क़ैसर ख़ालिद इस समय मुंबई में तैनात हैं और आईजी (सिविल डिफेंस) की ज़िम्मेदारी निभा रहे हैं। ये 1997 बैच के आईपीएस हैं। तब उन्हें महाराष्ट्र कैडर मिला था।

क़ैसर ख़ालिद इन दिनों एक ख़ास मिशन में जुटे हुए हैं। उनके इस मिशन का मक़सद मुल्क में हिन्दू-मुस्लिम एकता क़ायम करना है। क़ैसर इसी क़ौमी यकजहती के मद्देनज़र दर्जनों किताबें लिख चुके हैं और साथ ही 15 से अधिक कवि सम्मेलन और महफ़िल का आयोजन कर चुके हैं। यानी वो उर्दू अदब और शायरी का इस्तेमाल लोगों के बीच बेहतर समन्वय क़ायम करने के लिए कर रहे हैं।

कहते हैं कि इंसानी जज़्बातों को बेहतरीन अंदाज़ में समझने वाले क़ैसर ख़ालिद को जब लोग मुशायरों में सुनते हैं तो अपने आंसू रोक नहीं पाते हैं। इनकी शायरी लोगों के दिलों में चोट करती है और अंदर तक अपना असर डालती है।

क़ैसर कहते हैं, ‘हम लोगों को पुलिस में बताया जाता है कि मोहल्ले में आम लोगों से अच्छे ताल्लुक़ रखो। पुलिस की दोस्ताना छवि बनाएं। हमारी महफ़िल, मुशायरे और कवि सम्मेलनों ने यह काम बहुत तेज़ी से किया है।’

क़ैसर ख़ालिद महाराष्ट्र के सबसे साफ़-सुथरे और क़ाबिल अफ़सरों में से एक हैं, मगर वो जूनून की हद तक अदब में डूबे हैं।

क़ैसर कहते हैं कि, ‘उर्दू मेरा इश्क़ है और शायरी मेरी आशिक़ी। हाल ही में उनका एक और कविता संग्रह प्रकाशित हुआ है। क़ैसर मल्टी-टैलेंटेड हैं। उनकी खुद की शायरी में बहुत विविधता होती है। क़ैसर पटना कॉलेज से उर्दू ग्रेजुएट हैं।

क़ैसर ख़ालिद ने कई यादगार अशआर कहे हैं। उन्हें पिछले साल ‘साहित्य अकादमी पुरूस्कार’ से भी सम्मानित किया गया। यानी हम सकते हैं कि क़ैसर महाराष्ट्र में एकमात्र आईपीएस अफ़सर हैं, जिन्हें ‘साहित्य अकादमी पुरूस्कार’ मिला है।

क़ैसर बताते हैं कि, मुम्बई में कई निर्देशकों ने मुझे फिल्मों में गाने और ग़ज़ल लिखने के लिए कह चुके हैं, मगर मैंने फिलहाल कोई रूचि नहीं दिखाई है।

क़ैसर दरअसल अधिक ख्वाहिशों के पालने के ख़िलाफ़ हैं। उनका कहना है कि ज्यादा ख्वाहिश कहीं न कहीं शर्मिंदा करा देती है। इसलिए अपनी हद में रहना बेहतर है। वो एक शेर सुनाते हैं, जो खुद उन्होंने लिखा है —

“हो के असीर ख्वाहिशें दुनिया में यह हुआ
दर-दर आज झुकता सर मेरा सर लगा मुझे”

क़ैसर ख़ालिद का नाम अदब की दुनिया में 2005 में तब रौशन हुआ, जब उन्होंने सैय्यद मोहम्मद अली शाह अज़ीमाबादी जैसी बड़ी शख्सियत की ग़ज़लों को सम्पादित कर प्रकशित किया। अचानक से अदब की दुनिया के लोगों में उनका नाम गूंज गया। पटना कॉलेज का लड़का महाराष्ट्र में चहकने लगा।

हिंदी व उर्दू के 15 प्रोग्राम कराने के बाद अब क़ैसर खालिद मराठी ज़बान में मुशायरा करा रहे हैं, जिसमें मराठी साहित्यकार और कवि कलाम पढ़ेंगे।

क़ैसर कहते हैं, ‘इंक़लाब जिंदाबाद’ और ‘सारे जहां से अच्छा, हिन्दुस्तान हमारा…’ जैसे ऐतिहासिक अल्फ़ाज़ उर्दू अदब और मुशायरो से ही आए हैं। अक्सर उनके प्रोग्राम का नाम ‘पासबाँ-ए-अदब’ या फिर ‘जश्न-ए-अदब’ होता है। उनके ज्यादातर प्रोग्राम दिल्ली और मुम्बई में आयोजित हुए हैं।

मुल्क के ताज़ा हालात को देखते हुए क़ैसर कहते हैं कि, लोगों के बीच इस तरह के कार्यक्रम लगातार आयोजित होने चाहिए। हमें बेहतर ताल्लुक़ और अमल करना होगा। वो अपने शायरी वाले अंदाज़ में कहते हैं —

सिर्फ़ फिकरे मोहब्बत नहीं उसको काफ़ी
वो अमल से भी इज़हारे मोहब्बत तलब करता है…

क़ैसर सख्त पुलिसिंग के लिए भी जाने जाते हैं. मगर साहित्य अब उनका जूनून बन गया है. उनकी एक-एक बात अब अशआर होता है. जैसे वो ईद की मुबारकबाद देते हुए कहते हैं —

उम्मीदे आरज़ू नए गज़बे लिए है ईद
उतरे है ख़्वाब कितने ज़मीं पर हिलाल से

आज के मौजूदा हालात से क़ैसर ख़ालिद काफी परेशान हैं और क़लम की ताक़त के दम पर लोगों में मुहब्बत बांटने की बात कहते हैं। वो कहते हैं कि, महत्वाकांक्षा बड़ी हो सकती है, मगर इंसान की जान से क़ीमती नहीं हो सकती।

क़ैसर ख़ालिद इंसानी हुक़ूक़ को लेकर कहते हैं कोई भी धर्म इंसानियत से बड़ा नहीं हो सकता। आजकल मुल्क की फिज़ाओ में नफ़रत का जहर फ़ैला दिया गया है, जिसे मुहब्बत की शायरी से काटा जाएगा।

वो कहते हैं — “यह है दौर-ए-हवस मगर ऐसा भी क्या, आदमी कम से कम आदमी तो रहे…”