ब्लॉग: लोकतंत्र एक दुसरे की जरूरत!

इक़बाल रज़, कोलकाता। लोकतंत्र आज व्यापक रूप से दबाव में देखा जा रहा है। पारम्परिक रूप से लोकतान्त्रिक व्यवस्था में विश्वास रखने वाले काफी निराश हैं। संसद लोकतांत्रिक प्रणाली का केंद्र है जिसे चुनौती दी जा रही है। संसदों के भीतर विपक्षी आवाजों को दबाया जा रहा है जो वास्तव में लोकतंत्र के भविष्य की गंभीर तस्वीर पेश करता है।

दुनिया भर में, किसी न किसी तरीके से, लोकतांत्रिक व्यवस्था पर हमला या इसे दरकिनार किया जा रहा है। पिछले दशकों में असमानता का अभूतपूर्व उदय लोकतंत्र के लिए बड़ी चुनौती है जो बिगड़ते राजनीतिक वातावरण का प्रत्यक्ष परिणाम है।

लोकतंत्र आज राजनीति का अखाड़ा बन चुका है, हर स्तर पर चाहे देश का ,राज्य का या नगरपालिका चुनाव हो, संघर्ष चरम पर होता है। इससे असली मुद्दे पीछे छूट जाते हैं। सोशल मीडिया आदि के माध्यम से तथ्यों से परे सूचनाएं दी जाती है जिनसे भ्रमित होने की संभावना बढ़ जाती है। फलस्वरूप ऐसी राय बनानी मुश्किल हो जाती है जो विचारों का प्रतिनिधित्व करता हो। निश्चित रूप से, स्वस्थ लोकतंत्र के लिए प्रतिस्पर्धा, स्वस्थ्य वातावरण तथा योग्य उम्मीदवार होना आवश्यक है, इससे लोकतंत्र को मज़बूती मिलेगी।

लोकतंत्र लचीला है। इसे मजबूत करने के तरीकों पर ध्यान देना होगा। बुनियादी सिद्धांत यह है कि लोकतंत्र एकमात्र प्रणाली है जिसमें आत्म-सुधार की क्षमता है लेकिन यह लगातार गिरावट की ओर है। फिर भी लोकतंत्र में विकसित होने और बदलने की क्षमता है।

राजनीतिक संतुलन के लिए सफल लोकतंत्र में महिलाओं, पुरुषों, युवाओं, अल्पसंख्यक आबादी के प्रतिनिधियों को शामिल किया जाना चाहिए। अगर कभी गलत विकल्प चुन लिया जाता हैं तो राजनीतिक स्वास्थ्य संकट में आ जाता है इसलिए सावधान रहना ज़रूरी है।

चुनाव में, करोड़ों मतदाता तय करते है कि देश का नेतृत्व किसे सौंपनी है? वहीँ अनेक मतदाता इससे दूर रहना पसंद करते हैं, कहीं आप इनमे से तो नहीं? असल खतरा विश्वास और भागीदारी का है।

जब आप सोचते हो मेरे वोट करने या ना करने से क्या फर्क पड़ेगा यकीन माने आपके विरोधी की आधी जीत पक्की हो जाती है। लोकतंत्र का स्वास्थ्य चुनाव में भागीदारी पर निर्भर है, अगर लोग भाग नहीं लेते हैं, तो लोकतंत्र उस लड़ाई में हार रहा होता है।

सभी को जागृत होकर समझना होगा कि वह क्या है, जो हमारे लोकतंत्र की अखंडता पर प्रश्नचिन्ह लगा रहा है? जागरूकता से मतदान की संभावना बढ़ जाती है। माँ-बाप या बुज़ुर्ग बतायें कि “मतदान ज़रूरी है” – और एक वयस्क नागरिक होने की जिम्मेदारी है।” इसे चिन्हित कर ठीक करना बहुत ज़रूरी है।