इक़बाल रज़ा का ब्लॉग: इजरायल की चुनाव में नेतन्याहू की जीत और लोकतंत्र की हार हुई!

पिछले दिनों इजराइल में चुनाव संपन्न हुआ और राजनितिक समझ रखने वालों के अंदाज़े के मुताबिक़ भ्रष्टाचार के मामले में संगीन आरोपों का सामना कर रहे नेतन्याहू अपने आक्रामक राजनिति, अतिवादी और कट्टर विचारधारा के दम पर एक बार फिर चुनाव जीतने में कामयाब रहे भले ही कम मार्जिन से क्यों न हो?

नेतन्याहू चुनाव को डाइवर्ट करते हुए मतदाताओं में भय का माहौल बनाया और खुद को एकमात्र व्यक्ति के रूप में प्रस्तुत किया जो उनकी रक्षा कर सकता है। इसके लिए मीडिया, पुलिस, अदालतों पर हमले, चुनाव पूर्व गोलन हाइट्स पर क़ब्जे का अवैध समर्थन पाना या चुनाव के दौरान ईरान के इस्लामी क्रान्ति संरक्षक बल को आतंकवादी संगठन घोषित करवाने का श्रेय लेना आदि जैसे अतिसंवेदनशील अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों का भी सहारा लिया।

सिर्फ 0.8% से पीछे रही ब्ल्यू और व्हाइट और दलों का आपस में उचित गठबंधन न हो पाना, अरब नागरिक क्षेत्र जो आबादी का 20% है- में गुप्त कैमरा (Hidden Camera) लगाकर भय का माहौल बनाया जाना, अरब राजनीतिक दलों को मान्यता न देना और सहयोग करने से इंकार करना, जो नए नेसेट (Knesset) में 10 Seat है, यद्दपि ये सभी यहाँ की राजनीतिक प्रणाली के हिस्सा हैं-हार-जीत के कारण हो सकते हैं।

एक बार फिर से, उसी अतिवादी और कट्टर विचारधारा के साथ नेतन्याहू एक नयी राजनीति पारी खेलने को तैयार हैं। इस क्षेत्र में अशांति का एक नया दौर शुरू हो चूका है जिसकी झलक इज़राइली वायु सेना द्वारा शनिवार को सीरिया के हामा प्रांत के पास एक सैन्य ठिकाने को Target कर हमला किया जाना, इसकी एक ताज़ा मिसाल है।