आखिर क्यों मुस्लिम महिलाओं का फुटबॉल मैच देखना गैर इस्लामी , दारुल उलूम देवबंद ने दिया तर्क

महिला अधिकारों को लेकर कट्टर रहने वाले सऊदी अरब में अब महिलाओं को फुटबॉल मैच देखने की इजाजत मिल गई है तो वहीं भारत में देवबंद स्थित दारुल उलुम ने मुस्लिम महिलाओं के फुटबॉल मैच देखने पर फतवा जारी किया है.

उत्तर भारत की इस्लामी संस्था दारुल उलुम के एक मौलवी ने देश में मुस्लिम महिलाओं द्वारा पुरुषों के फुटबॉल मैच देखने के खिलाफ फतवा जारी किया है.

मौलवी मुफ्ती अतर कासमी ने कहा, “मैच के दौरान महिलाओं की नजर पुरुषों की नंगी जांघों पर पड़ती है जो इस्लाम में महिलाओं के लिए हराम है.”

इतना ही नहीं मौलवी कासमी ने उन पुरुषों को भी लताड़ा है जो अपनी पत्नियों को टीवी पर भी फुटबॉल मैच देखने की इजाजत देते हैं. अपने बयान में उन्होंने कहा, “क्या आप लोगों को कोई शर्म नहीं है? खुदा का कोई डर नहीं है, जो आप इन्हें ऐसी चीजें देखने दे रहे हैं?”

दारुल उलुम का यह फतवा उस वक्त आया है जब मध्य पूर्व के सुन्नी बहुल देश सऊदी अरब ने भी महिलाओं को स्टेडियम के अंदर जाकर फुटबॉल मैच देखने की इजाजत दे दी है.

कासमी के मुताबिक, “क्यों महिलाएं ऐसे मैच देखना चाहती हैं? क्या जरूरत है? उन्हें इस तरह के फुटबॉल मैच को देखकर क्या मिलेगा?” उन्होंने कहा कि महिलाओं का इतना भी ध्यान नहीं होगा कि वे मैच का स्कोर भी बता सकें.

दारुल उलुम उत्तर प्रदेश के देवबंद में स्थित एक इस्लामिक संस्था है, जो पिछले 150 साल से सुन्नी तौर-तरीकों की शिक्षा दे रही है. संस्था की इस्लामिक विचारधारा की कड़ी व्याखया दुनिया के कई संगठनों का वैचारिक आधार है. इसमें तालिबान संगठन भी शामिल है.

भारत की कुल 1.3 अरब की आबादी में तकरीबन 13 फीसदी मुसलमान हैं. उसमें भी अधिकतर सुन्नी हैं. लेकिन भारतीय संविधान के तहत इस तरह के फतवे को किसी कानूनी आधार पर लागू नहीं किया जा सकता है.

देश की कई महिला अधिकार कार्यकर्ताओं ने देवबंद के इस फतवे के विरोध में आवाज उठाई है. महिला कार्यकर्ता साहिरा नसीह कहती हैं, “फतवे की दलील को मानें तो मुस्लिम महिलाएं खेल से जुड़े कोई भी कार्यक्रम मसलन एथलेटिक्स, टेनिस, तैराकी जैसा कुछ नहीं देख सकती.”

उन्होंने कहा कि यह अनैतिक है. इसके पहले जारी फतवे में कहा गया था कि मुस्लिम महिलाओं को ब्यूटी पार्लर नहीं जाना चाहिए और न ही तंग कपड़े पहनने चाहिए.