इजरायली प्रधानमंत्री बिंजामिन नितेनयाहू भारत का लंमा दौरा पूरा करके वापस जा चुके हैं। इससे पहले पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के शासनकाल में उनके निमंत्रण पर एरेल शेरोन सितंबर 2003 में दिल्ली आए थे, लेकिन तिलअवीव और यरूशलेम में होने वाले 2 आतंकवादी हमलों में 13 यहूदियों की मौत की वजह से शेरोन दौरा अधुरा छोड़कर दो दिन बाद ही वापस चले गये थे।
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उसके बावजूद उनके दौरे की एतिहासिक महत्व है क्योंकि वह भारत का दौरा करने वाले पहले इजरायली प्रधानमंत्री थे। नितेनयाहू के दौरे की भी राजनयिक और राजनितिक महत्व कम नहीं है, क्योंकि 15 साल के लंबे समय के बाद किसी इजराइली प्रधानमंत्री के क़दम भारत की धरती पर पड़े हैं।
नितेनयाहू ने इंडिया टुडे को दिए गए अपने इन्टरव्यू में यह माना कि संयुक्त राष्ट्र में भारत के रुख से उन्हें नाराजगी हुई थी लेकिन उन्होंने यह भी खुलासा किया कि इसका भारत और इजराइल के आपसी रिश्तों पर कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ा है।
प्रधानमंत्री मोदी से अपने खास रिश्ते का हवाला देते हुए याहू ने दावा किया कि दोनों देश के संबंध तमाम मोर्चों पर तेज़ी से आगे बढ़ रहे हैं।आपको बता दें कि प्रधानमंत्री मोदी संघ परिवार के सदस्यों को खुश करने की खातिर इजराइल की जितनी चाहें तारीफें कर लें, उन्हें इस बात का पूरा पता है कि अरब दुनियां के साथ भारत के रिश्ते किसी हालत में खराब न हों। अरब देश ही से भारत अपने तेल और गेस की 60 फीसद ज़रूरतें पूरी करता है और 70 से 75 लाख भारतीय नागरिक मध्य पुर्व के विभिन्न देशों में जॉब कर रहे हैं जो अरबों डॉलर का पैसा अपने देश भेजते हैं।
यही वजह है कि संयुक्त राष्ट्र में अमेरिका और इजराइल के खिलाफ वोट करता है, सुषमा स्वराज न्यूयॉर्क की एक प्रेस सम्मेलन में कहती है कि भारत फिलिस्तीनियों की समर्थन के अपने रुख से पीछे नहीं हटा है और खबर यह है कि याहू की गर्मजोश मेजबानी के कुछ सप्ताह के अंदर ही मोदी फिलिस्तीन का दौरा करने वाले हैं।