डॉ कफील अहमद खान का खुला पत्र : बीआरडी अस्पताल में 70 से ज्यादा शिशुओं की मौत उच्च स्तर पर प्रशासनिक विफलता थी

गोरखपुर। पिछले साल गोरखपुर में बीआरडी अस्पताल में 70 से ज्यादा शिशुओं की मौत के सिलसिले में गिरफ्तार किए गए डॉ कफील अहमद खान शनिवार को बाहर आ गए। जमानत मिलने के बाद घर लौटने पर उन्होंने एएनआई से बात करते हुए खान ने कहा, ‘उस दिन मैंने जो कुछ किया वह एक पिता, डॉक्टर और एक सच्चा हिंदुस्तान होने के नाते किया। मेरा काम बच्चों के साथ अच्छा व्यवहार करना था, मैंने ऑक्सीजन सिलेंडरों की व्यवस्था करने के अतिरिक्त काम किया क्योंकि तरल ऑक्सीजन समाप्त हो गई थी।

पूर्व आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट ने डॉ कफील की तस्वीर कैप्शनिंग पर ट्वीट किया: ‘प्रिय भारतीय, ये डॉ कफील खान की तस्वीरें हैं, उनकी मां उनके घर पहुंचने के बाद रो रही हैं। आशा है कि आप देख सकते हैं कि वह क्या कर रहा है। इस तरह आपकी सरकार आपके असली नायकों का इलाज करती है। क्या आपको अभी भी लगता है कि आप हीरो के लायक हैं? मुझे ऐसा नहीं लगता!

https://twitter.com/sanjivbhatt/status/990440544609415169/photo/1

अब सवाल उठता है कि आखिर 10 अगस्त की रात से ऑक्सीजन की कमी से घुट-घुट कर मरने वाले मासूमों का असली कातिल कौन है। पुलिस-प्रशासन आखिर असल गुनहगारों तक क्यों नहीं पहुंच पा रही है। सवाल उठ रहा है कि क्या सरकार बड़़े अफसरों को किसी वजह से बचा रही है या फिर बीआरडी प्राचार्य से लेकर डॉ. कफील की गिरफ्तारी सिर्फ लोगों के तात्कालिक गुस्से को शांत करने को लेकर की गयी थी।

दरअसल, बीआरडी ऑक्सीजन कांड में प्रदेश सरकार खुद अपने बुने जाल में फंसती जा रही है। ऑक्सीजन की कमी से मौतों के बाद सरकार बचाव की मुद्रा में आ गई थी। बीआरडी पहुंचे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की मौजूदगी में स्वास्थ्य मंत्री सिद्धार्थ नाथ सिंह और चिकित्सा शिक्षा मंत्री आशुतोष टंडन ने ताल ठोक कर कहा था कि ऑक्सीजन की कमी से मौतें नहीं हुई हैं। सात अभियुक्तों डा. पूर्णिमा शुक्ला, गजानन्द जायसवाल, डा.सतीश कुमार, सुधीर कुमार पांडेय, संजय कुमार त्रिपाटी, उदय प्रताप शर्मा और मनीष भंडारी की चार्जशीट 26 अक्तूबर 2017 को दाखिल कर दी गई।

YouTube video

वैसे क्लीन चिट देना मजबूरी भी नजर आता है क्योंकि जब सरकार ने ही ऑक्सीजन की कमी को मौत की वजह मामने से इनकार कर दिया हो तो विवेचक इसे कैसे मौत की वजह बता सकता है। कोर्ट से ऑक्सीजन कांड के गुनहगारों को मिल रही जमानत के बाद अब सवाल उठता है कि आखिर ऑक्सीजन की कमी से तड़प-तड़पकर मरे मासूमों का असल कातिल कौन है। सवाल यह उठ रहा है कि आखिर जब गिरफ्तार लोगों के गुनाह साबित नहीं हो रहे हैं कि क्या उन्हें लोगों के गुस्से को शांत करने के लिए सलाखों के पीछे डाल दिया गया था।

इतना ही नहीं 17 अप्रैल को जेल में लिखे पत्र में भी डॉ.कफील ने खुद को बेगुनाह बताते हुए सरकार और प्रशासन को कटघरे में खड़ा किया है। डॉ.कफील ने 10 पन्ने के पत्र में स्पष्ट लिखा है कि पुष्पा सेल्स द्वारा अपनी 68 लाख की बकाया राशि के लिए लगातार 14 बार रिमाइंडर भेजे जाने के बावजूद अगर कोई इस संदर्भ में लापरवाही बरती गई और कोई कार्रवाई नहीं की गयी तो इसके लिए गोरखपुर के डीएम, डीजी मेडिकल एजुकेशन और स्वास्थ्य और चिकित्सा शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव दोषी हैं। यह पूरी तरह से एक उच्चस्तरीय प्रशासकीय विफलता है कि जिन्होंने स्थिति की गंभीरता को नहीं समझा।

अब ऐसे में सवाल उठ रहा है कि सरकार ऑक्सीजन सप्लाई करने वाली फर्म का भुगतान अटकाने वाले अधिकारियों पर मेहरबानी क्यों बरत रही है। गोरखपुर के तत्कालीन जिलाधिकारी राजीव रौतेला, जिन्हें हाईकोर्ट की फटकार के बाद भी कुर्सी से तत्काल नहीं हटाया गया, के खिलाफ कार्रवाई की सुई क्यों नहीं घूम रही है। हकीकत यह है कि तत्कालीन गोरखपुर डीएम और डीजी मेडिकल एजुकेशन ने सक्रियता दिखाई होती तो पुष्पा सेल्स का भुगतान हो गया होता और शायद बच्चों की जान बच जाती।

डॉ.कफील में जेल से जो पत्र जारी किया है उसके शब्द सियासी नजर आते हैं। अपने पत्र के एक हिस्से में उन्होंने अप्रत्यक्ष रूप से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को ही सवालों के कटघरे में खड़ा कर दिया। पत्र में कफील के शब्द हैं,मेरी जिन्दगी में उथल-पुथल उस वक्त शुरू हुई जब घटना के बाद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी महाराज अस्पताल पहुंचे। उन्होंने कहा कि तो तुम हो डॉक्टर कफील जिसने सिलिंडर्स की व्यवस्था की। मैंने कहा, हां सर, तो वो नाराज हो गए और कहने लगे- तुम्हें लगता है कि सिलिंडरों की व्यवस्था कर देने से तुम हीरो बन गए, मैं देखता हूं इसे।

दरअसल, डॉ. कफील का मुस्लिम होना विपक्ष ही नहीं प्रदेश की भाजपा सरकार को भी रास आ रहा है। भाजपा जहां डॉ. कफील को खलनायक के रूप में पेश कर हिंदू संवेदना से खेलना चाहती है तो सपा, बसपा और कांग्रेस उन्हें बेचारा बताकर मुस्लिम संवेदना को अपने पक्ष में करने की कोशिशों में हैं।

डॉ.कफील का परिवार भी पूरे प्रकरण को हल्के नहीं पडऩे देना चाहता है। डॉ.कफील की पत्नी डॉ शबिस्ता खान का आरोप है कि उनके पति को चिकित्सा सुविधा न देकर जान से मारने की सजिश रची जा रही है। वे कहती हैं कि मेरे शौहर ने बच्चों को बचाने की हर मुमकिन कोशिश की। फिर भी उन्हें बच्चों की मौत का जिम्मेदार बना दिया गया।

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन भी डॉ.कफील समेत अन्य डॉक्टरों के समर्थन में उतर आया है। बीते 9 अप्रैल को गोरखपुर में मीडिया के सामने आईएमए के सचिव .आर.पी.शुक्ला ने कहा कि अगस्त माह के ‘कथित ऑक्सीजन कांड’ में हमारे तीन साथी डॉक्टरों डा.राजीव मिश्रा, डा.सतीश कुमार एवं डा.कफील खान को गिरतार कर गंभीर धाराएं लगाकर जेल में डाल दिया गया। इसे एक सामान्य प्रक्रिया मानकर हममें से किसी ने भी इसका विरोध नहीं किया, परंतु उनकी जेल में प्रताडऩा, उनकी जमानत न होने देना एवं इलाज में लापरवाही से उनके प्राण संकट में डालने से किसी बड़ी साजिश की बू आ रही है।

उन्होंने सवाल उठाया कि जब प्रदेश सरकार का स्पष्ट मानना है कि बच्चों की मौत ऑक्सीजन की कमी से नहीं हुई है तो गंभीर आरोपों में निरुद्ध डॉक्टरों को बलि का बकरा क्यों बनाया जा रहा है? उधर, बीते 25 अप्रैल को आईएमए के राष्ट्रीय सचिव रामेन्द्र टंडन ने गोरखपुर जेल में बंद डॉक्टरों से मुलाकात कर सरकार पर हमला बोला। टंडन ने कहा कि डॉक्टरों के साथ अपराधियों सरीखा व्यवहार गलत है।

सरकार पूरी तरह निष्पक्ष जांच करा ले, यदि डॉक्टर दोषी हैं तो उन्हें कड़ी सजा मिलनी चाहिए। लेकिन बिना दोष साबित हुए आठ महीने तक की जेल को न्यायसंगत नहीं ठहराया जा सकता है। डॉ. शबिस्ता खान ने डॉ कफील द्वारा 17 अप्रैल को जेल से लिखा एक पत्र भी जारी किया है। 10 पन्ने के पत्र में डॉ कफील ने 10 अगस्त की रात के घटनाक्रम और अपने द्वारा बच्चों की जान बचाने के लिए किये गए प्रयास की चर्चा की है। प्रस्तुत हैं पत्र के प्रमुख अंश :

सलाखों के पीछे इन 8 महीनों की नाकाबिले बर्दाश्त यातना, बेइज्जती के बावजूद आज भी वो एक-एक दृश्य मेरी आंखों के सामने उतना ही ताजा है जैसे यह सबकुछ ठीक यहां अभी मेरी आंखों के सामने घटित हो रहा हो। कभी-कभी मैं खुद से यह सवाल करता हूं कि क्या मैं वाकई कुसूरवार हूं? मेरे दिल की गहराइयों से जो जवाब फूटता है वह होता है- नहीं! बिलकुल नहीं !

उस 10 अगस्त की रात को जैसे ही मुझे वह व्हाट्स एप सन्देश मिला तो मैंने वही किया जो एक डॉक्टर को, एक पिता को, एक जिम्मेदार नागरिक को करना चाहिए था। मैंने हर उस जिंदगी को बचाने की कोशिश की जो अचानक लिक्विड ऑक्सीजन की सप्लाई रुक जाने के कारण खतरे में आ गयी थी। मैंने अपना हर वो संभव प्रयास किया जो मैं उन मासूम बच्चों की जिंदगियों को बचाने के लिए कर सकता था। मैंने पागलों की तरह सबको फोन किया, गिड़गिड़ाया, बात की, यहां-वहां भागा, गाड़ी चलाई, आदेश दिया, चीखा-चिल्लाया, सांत्वना दी, खर्च किया, उधार लिया, रोया। मैंने वो सबकुछ किया जो इंसानी रूप से किया जाना संभव था।

मैंने अपने संस्थान के विभागाध्यक्ष को फोन किया। सहकर्मियों, बीआरडी मेडिकल कालेज के प्राचार्य, एक्टिंग प्राचार्य, गोरखपुर के डीएम, गोरखपुर के स्वास्थ्य विभाग के एडिशनल डायरेक्टर, गोरखपुर के सीएमएस, बीआरडी मेडिकल कालेज के सीएमएस को फोन किया। मेरी जिन्दगी में उथल-पुथल उस वक्त शुरू हुई जब घटना के बाद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी महाराज अस्पताल पहुंचे और उन्होंने कहा, तो तुम हो डॉ.कफील जिसने सिलिंडर्स की व्यवस्था की। मैंने कहा, हां सर। वो नाराज हो गए और कहने लगे ‘तुम्हें लगता है कि सिलिंडरों की व्यवस्था कर देने से तुम हीरो बन गए, मैं देखता हूं इसे।’

योगी जी नाराज थे क्योंकि यह खबर किसी तरह मीडिया तक पहुंच गयी थी, लेकिन मैं अपने अल्लाह की कसम खाकर कहता हूं कि मैंने उस रात तक इस सम्बन्ध में किसी मीडिया कर्मी से कोई बात नहीं की थी। 150 से भी ज्यादा कैदियों के साथ एक तंग बैरक में फर्श पर सोते हुए जहां रात में लाखों मच्छर और दिन में हजारों मक्खियां भिनभिनाती हैं, जीने के लिए खाने को हलक के नीचे उतारना पड़ता है, खुले में लगभग नग्नावस्था में नहाना पड़ता है, जहां टूटे हुए दरवाजों वाले शौचालयों में गंदगी पड़ी रहती है।

मैं अपनी बेटी के पहले जन्मदिन में भी शामिल नहीं हो सका जो अब 1 साल 7 महीने की हो गयी है। मुझे फिर से वही सवाल सता रहा है कि क्या मैं वाकई में गुनाहगार हूं? नहीं! नहीं! नहीं! मैं 10 अगस्त 2017 को छुट्टी पर था जिसकी अनुमति मुझे मेरे विभागाध्यक्ष ने दी थी। छुट्टी पर होने के बावजूद मैं अस्पताल में अपना कर्तव्य निभाने पहुंचा। क्या ये मेरा गुनाह है?