नई दिल्ली : जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में जो तनाजा चल रहा है उसे समाज का एक हिस्सा देशद्रोह बता रहा है तो दूसरे का कहना है कि ये ख्यालों की इज़हार है.तलबा ग्रुप सदर कन्हैया कुमार को पुलिस ने देशद्रोह क़ानून के तहत गिरफ़्तार किया.साल 1975 में लगे इमरजेंसी के बाद ये पहला मौक़ा था जब जेएनयू के स्टूडेंट ग्रुप सदर को पुलिस ने गिरफ़्तार किया हो.इंसानी हकाएक कारकुन गौतम नवलखा का मानना है कि तशद्दुद की वकालत करना नहीं बल्कि उसे भड़काना देशद्रोह है.
गौतम कहते हैं, “अंग्रेज़ों के वक़्त 1860 में ये क़ानून बनाया गया था लेकिन आज के संविधान में हमें दिए गए हक के खिलाफ है ये क़ानून.
उनके मुताबिक कोर्ट ने बहुत साफ़ तौर से ये हुक्म जारी किए हैं कि किन मामलों में इस क़ानून का इस्तेमाल हो सकता है.वो कहते हैं, “कोर्ट ने यह साफ रूप से कहा है कि अगर कोई देश मुखालिफ नारे लगाता है तो उसे देशद्रोह नहीं माना जा सकता.”वो एक पुराने मामले का मिसाल भी देते हैं.गौतम के मुताबिक, “पंजाब में बलवंत सिंह नाम के एक शख्स थे जिन्होंने ख़ालिस्तान के हिमायत में नारे लगाए थे और उन्हें देशद्रोह के इलज़ाम में गिरफ़्तार कर लिया गया था.”वो बताते हैं, “जब उनकी सुनवाई शुरू हुई तो कोर्ट ने उन्हें ये कहकर रिहा कर दिया कि उनके ख़िलाफ़ देशद्रोह का मामला बनता ही नहीं है.”
जेएनयू में इस क़ानून के इस्तेमाल को वो पूरी तरह ग़लत बताते हैं.गौतम कहते हैं, “जेएनयू में जो भी हुआ वो सरासर ग़लत है और इससे एक बहुत खतरनाक वाकिया पैदा हो रही है.”उनके मुताबिक, “इसके पीछे जो सियासत है वो अब सामने आ रही है. कुछ चंद लोगों के कहने पर होम मिनिस्टर राजनाथ सिंह इतना बड़ा बयान दे देते हैं. वहीं पुलिस कमिश्नर ख़ानापूर्ति के लिए काम करते हैं.”गौतम कहते हैं कि राष्ट्रवाद और राष्ट्रविरोधी नाम से जो माहौल बनाया जा रहा है वो बहुत ही ख़तरनाक है और बहुत ही बड़ा मुद्दा है जिस पर गौर किए जाने की ज़रूरत है.