जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के पीएचडी के छात्रों ने पांच साल की कड़ी मेहनत के बाद हल्दी से पेट के कैंसर का इलाज खोज निकाला है। पेट के कैंसर का हल्दी में कुछ ऐसे यौगिक पदार्थ होते हैं जो उस बैक्टीरिया पर सीधे असर डालते हैं, जिससे पेट के कैंसर का प्रभाव कम होने लगता है।
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के बायोप्रौद्योगिकी विभाग के प्रोफेसर डॉ. रूपेश चतुर्वेदी के नेतृत्व में जेएनयू के बायोप्रौद्योगिकी के पीएचडी के छात्र अच्युत पण्डे, रोहित तिवारी, अल्का यादव, ज्योति गुप्ता, ज्योति भी शामिल हैं।
विभाग के प्रोफेसर डॉ. रूपेश चतुर्वेदी ने बताया कि पेट में अशुद्ध भोजन व पानी के प्रसार के कारण हेलिकोबैक्टर पाइलिरो बैक्टीरिया पनपता है। इसकी वजह से पेट के अंदर अल्सर होता है और अल्सर को ही बैक्टीरिया कैंसर में तब्दील कर देता है। दिल्ली समेत पूर्वोत्तर, उत्तर और दक्षिण भारत के कई राज्यों में रहने वाले लोगों में यह पाया जाता है।
प्रोफेसर चतुर्वेदी के अनुसार पांच साल तक किए गए परीक्षण में लखनऊ से 40 लोगों के खून के सैंपल मंगवाए गए थे जिनमें 39 खून के सैंपल में हेलिकोबैक्टर बैक्टीरिया का प्रभाव पाया गया।
करक्यूमिन को किसी तरल रसायन में डालने के बाद उसकी ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ने लगती है। करक्यूमिन से बनी ऑक्सीजन को जब खून में मौजूद हेलिकोबैक्टर बैक्टीरिया में प्रयोग करते हुए परीक्षण किया गया। तो शोध सफल हुआ और बैक्टीरिया का प्रभाव कम होने लगा। इससे पेट के कैंसर का इलाज संभव हो सकेगा।
प्रोफेसर रूपेश चतुर्वेदी ने बताया कि बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर राकेश भटनागर जेएनयू के बायोप्रौद्योगिकी विभाग के प्रोफेसर रह चुके हैं। उन्होंने एंथ्रेक्स बीमारी के लिए एक दवाई तैयार की है जिसका फॉर्मेसी कंपनी में औद्योगिक परीक्षण चल रहा है।