“जिस तरह प्रधानमंत्री को हवा में घुमने का शौक है ठीक उसी तरह उनकी योजनाएं भी हवा साबित हो रही”

भाजपा सरकार गरीबों के लिए काम कर रहीं हैं ये एक कोरी बकवास है इन साढ़े तीन साल की एक भी ऐसी योजना बताओं जिससे गरीब लोगों को फायदा हुआ है।

गरीब तो इनके शासनकाल में और गरीब हो रहा हैं और अमीर अमीर हो रहा हैं।अगर आप अपने आसपास के हालात पर मुआयना करेंगे तो हकीकत आपके सामने होंगी पुरे देश का सर्वे करने की आपको आवश्यकता नहीं होंगी।

भाजपा ने देश में ऐसी दुर्गंध बोई हैं जिसकी बदबू देश में माहामारी की तरह फ़ैल चुकी हैं।जिस तरह प्रधानमंत्री को हवा में घुमने का शौक है ठीक उसी तरह उनकी योजनाएं भी हवा साबित हो रही हैं।

कांग्रेस द्वारा स्थापित योजनाओं का ही अभी तक शिलन्यास किया है दिखाने के लिए सिर्फ ये हैं कि एक धर्म विशेष के लिए नफरतें पैदा की है और उनके खिलाफ ऐसे कानून पारित किये हैं जो गैरजरूरी थे।

जिससे समाज में बसने वाले लोगों को कोई पैरोकार नहीं था। नफरतो के अलावा इनके शासनकाल में आपको कुछ भी नजर नहीं आएंगा। नफरतो का ऐसा बीज बो रहे हैं कि एक धर्म विशेष अपने आप को असुरक्षित महसूस कर रहा है।

आज जात धर्म के नाम पर नफरतें पैदा की जा रही हैं। जिससे किसी भी समाज का फायदा नहीं है लेकिन वोट की राजनीति के लिए देश में जहर फैलाया जा रहा हैं। देश की जिस योजनाओं के ये विरोधी थे आज उन योजनाओं के सहारे अपनी पिठ थपथपा रहे हैं।

लेकिन धीरे-धीरे देश की जनता को इनकी असलियत का पता चल रहा हैं लोग अब इनके घोर विरोधी हो रहें हैं जनता इनके कार्यों से परेशान हो चुकीं हैं जिन्होंने जात धर्म के नाम पर वोट दिया था मन ही मन पश्चाता रहें हैं क्योंकि आज एक आम इंसान को देश में आर्थिक तौर पर बहुत परेशानी का सामना करना पड़ रहा हैं हालात सबके लिए एक समान होते हैं।हर भारतीय को आज उपभोग की वस्तुओं के बढ़ते दाम के कारण उसके जेब पर दबाव पड़ रहा हैं।

एक आम इंसान अगर देश में खुशहाली,जीवन में खुशहाली, आने वाली नस्लों में खुशहाली चाहता है तों उसे जात धर्म के नाम पर ठगने वालों से सावधान रहना होगा। इंसानियत भाई चारे को अपने जीवन में जगह देना होगा।

जीवन का यही वसूल हैं खुशहाली हैं तो सबकुछ है। अशांति नफरतो से जीवन और घर भी बर्बाद हो जाता हैं। धर्म से बड़ी इंसानियत हैं यहीं सबसे बड़ा धर्म है।ब मुबारक हो हम नफरतो के भारत में है शुक्रिया धन्यवाद थैंक्स!!!!

Joya Waseem

(यह  लेखक के निजी विचार हैं)