सुप्रीम कोर्ट में ऊंची जाति के जज कानून और अपने ज्यूडिशियल पावर का गलत इस्तमाल करते हैं: जस्टिस करनन

कलकत्ता उच्च न्यायालय के जज सीएस करनन अपने बयानों से एक बार फिर चर्चा में हैं। इस बार उन्होंने सुप्रीम कोर्ट को दलित विरोधी बताते हुए कहा है कि ऊँची जाति के जज कानून और अपने ज्यूडिशियल पावर का गलत इस्तमाल कर रहें हैं। यह बात उन्होंने अवमानना के नोटिस के विरोध में कही। करनन को सात सदस्यीय संविधान पीठ ने अवमानना नोटिस भेजा है।

सुप्रीम कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को लिखे पत्र में करनन ने कहा कि ऊंची जाति के जज अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वर्ग के जज से मुक्ति चाहते हैं। उन्होंने कहा कि एक दलित जज को अवमानना नोटिस जारी करना अनैतिक है और अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति अधिनियम के खिलाफ है।

जस्टिस करनन ने कहा कि संविधान पीठ हाईकोर्ट के कार्यरत जज के खिलाफ स्वत: संज्ञान लेते हुए अवमानना नोटिस जारी नहीं कर सकती।मेरा पक्ष सुने बिना मेरे खिलाफ ऐसा आदेश कैसे जारी किया जा सकता है। इससे जाहिर होता है कि पीठ मुझसे द्वेष रखती है।

अवमानना नोटिस जारी करने से मेरी समानता और प्रतिष्ठा का अधिकार प्रभावित हुआ है और साथ ही यह प्रिंसिपल ऑफ नेचुरल जस्टिस के भी खिलाफ है।

जस्टिस करनन ने उनके मामले को जस्टिस खेहर न सुनें। उन्होंने कहा कि या तो उनके मामले को तत्काल संसद के पास भेज दिया जाए या जस्टिस खेहर के सेवानिवृत्त होने के बाद मामले की सुनवाई हो।

बता दें कि जजों पर करप्शन का आरोप लगाने के मामले में जस्टिस कर्णन को हाल ही में सुप्रीम कोर्ट की ओर से नोटिस दिया गया है। इसी पर उन्होंने कोर्ट के रजिस्ट्रार को लेटर लिखा है, जिसमें यह बात कही गई है। यह पहला केस था जब सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के मौजूदा जज को अवमानना का नोटिस भेजा था।