ISI के लिए जासूसी करने वाले संघी तय नहीं करेंगे कि हमें क्या बोलना है और क्या नहीं: कन्हैया कुमार

डीयू के रामजस कॉलेज में कल और आज एबीवीपी ने हिंसा का जो नंगा नाच दिखाया है उससे एक बार फिर साबित हो गया कि आरएसएस और भाजपा के पास विचारधारा के नाम पर केवल लातधारा है जिसके समर्थक शब्दों के बदले लात-घूँसों का इस्तेमाल करने में ही यकीन रखते हैं।

यह कैसी राजनीतिक संस्कृति है जिसमें पत्रकारों, शिक्षकों आदि को पीटकर अस्पताल पहुँचा दिया जाता है? ‘भारत माता की जय’ बोलते हुए माँ-बहन की गालियाँ देेने वाले लोगों को यह मालूम होना चाहिए कि हम भारत के लोग आईएसआई के लिए जासूसी करने वाले लोगों से पूछकर यह तय नहीं करेंगे कि किसे किस विषय पर बोलने का अधिकार है।

देश को खोखला बनाने की साज़िश में लगे लोगों को यह भी मालूम होना चाहिए कि उनकी हिंसा न जेएनयू को डरा पाई न डीयू के साथियों को। यह हिंसा न तो इरोम शर्मिला का हौसला कम कर पाई न डीयू में पिंजरा तोड़ अभियान से जुड़ी उन लड़कियों के मन में डर पैदा कर सकी जो न केवल होस्टलों बल्कि कैंपसों के बाहर भी अपनी आज़ादी के लिए आवाज़ बुलंद कर रही हैं।

संघियों की हिंसा असल में उन्हें जनता के सामने नंगा ही कर रही है। आज चाहे वे कभी पुलिस के दम पर तो कभी प्रशासन के दम पर उछल-कूद मचा लें लेकिन समाज की प्रगतिशील ताकतों की एकजुटता उनका सामना करने के लिए काफ़ी है।

मेरा सलाम उन साथियों को जो कल पत्थरों और लात-घूँसों का सामना करने के बाद आज फिर बोलने की आज़ादी का समर्थन करने डीयू पहुँचे। वही लोकतंत्र के रक्षक हैं और उनकी आवाज़ ही संविधान की आवाज़ है।

हमें चाहिए आज़ादी, संघी सोच से आज़ादी।