देश के बंटवारे के समय असम के पाकिस्तान के साथ विलय रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले असम विधानसभा के पहले उपाध्यक्ष मौलवी मोहम्मद अमीरुद्दीन के परिवार के सदस्य अपनी ही जमीं पर खुद की राष्ट्रीयता साबित करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
उन्हें विदेशी न्यायाधिकरण की ओर से नोटिस दिए जा रहे हैं। अमीरुद्दीन का परिवार असम के मोरेगांव जिले में रहता है। अमीरुद्दीन के भतीजे हबीकुल इस्लाम कहते हैं, ‘वर्ष 2012 से उनके दिवंगत चाचा के 400 सदस्यीय परिवार के 100 लोगों को विदेशी होने का नोटिस जारी किया गया है।
ये सभी लोग मेरे दिवंगत चाचा के पांच भाइयों के वंशज हैं।’ उन्होंने कहा कि इस साल अमीरुद्दीन के पोते और प्रपौत्र को विदेशी घोषित कर दिया गया। अमीरुद्दीन एक निर्दलीय विधायक थे और उन्होंने विधानसभा में नोगोंग मोहम्मडन ईस्ट सीट का प्रतिनिधित्व किया था।
उन्होंने अप्रैल 1937 और 1946 के बीच विधानसभा के उपाध्यक्ष की जिम्मेदारी निभाई थी। वह और तीन अन्य जमीयत उलेमा-ए-हिंद समर्थित मुस्लिम विधायकों ने प्रीमियर गोपीनाथ बोरदोलोई का समर्थन किया था ताकि असम पाकिस्तान का हिस्सा न बन पाए।
नोटिस से नाराज इस्लाम ने कहा, ‘मेरे चाचा अक्सर हमें बताते थे कि वह और तीन अन्य मुस्लिम विधायकों ने असम को पाकिस्तान का हिस्सा बनाने के मुस्लिम लीग की योजना को खारिज कर दिया था। उन्होंने बारदोलोई का समर्थन किया ताकि असम भारत के साथ बना रहे। मेरे चाचा के वंशजों को विदेशी होने का नोटिस जारी किया गया है।
अमीरुद्दीन का पैतृक गांव कालिकाझारी मोरेगांव कस्बे से 10 किमी दूर है। इस गांव में 174 घर हैं और कालिकाझारी के लगभग सभी परिवारों को नोटिस मिला है। यही नहीं कुछ लोगों को तो विदेशी घोषित कर दिया गया है।