बाबरी विध्वंस के बाद आडवाणी के हाथ में हाथ डालकर एकता का प्रदर्शन कर रहे थे नीतीश कुमार: लालू यादव

बाबरी मस्जिद ध्वस्त करने के बाद जब आडवाणी देशभर में घूम रहे थे तो नीतीश 1994 में बंबई में आडवाणी का हाथ अपने हाथ से उठाकर एकता का प्रदर्शन कर रहा था। जब पूरे देश में मंडल की राजनीति उफान पर थी, बिहार में हमारी और यूपी में मुलायम सिंह और मान्यवर कांशीराम की सरकार थी।

सदियों से सतायें वंचित, उपेक्षित, दलित, अकलियत और पिछड़ों की एकता चरम पर थी, सभी पीड़ित लोग एक दूसरे के दर्द के साँझेदार बनकर एक ही माला के सुंदर मोती बन रहे थे। उस दौर में अपनी संकीर्ण मानसिकता और अतिमहत्वकांक्षी होने के कारण नीतीश कुमार बहूजनों के हितों की तिलांजलि देकर RSS की गोद में जाकर खेलने वाला पहला पिछड़ा नेता था।

नीतीश कुमार भाजपा नेताओं के साथ घूम घूमकर उस वक़्त आर॰एस॰एस॰ को मज़बूत करने की वकालत करता था जिस वक़्त भाजपा और आरएसएस मंडल कमीशन, आरक्षण और वंचितो की भागीदारी का विरोध कर रही थी।

आज फिर 2017 में जब अकलियत, दलित और पिछड़ा को एकजुट कर हम देश और बाबा साहेब का संविधान बचाने की कोशिश कर रहे थे यह पलटूराम बहूजनों की एकता को दुत्कार फिर अपने आकाओं की गोद में खेलने चला गया। यह दलितों, पिछड़ों का सबसे बड़ा दुश्मन है।

इसी ने RSS के इशारे पर वंचित समाज को बाँटने का काम किया है। RSS खुलकर बहूजनों का विरोध करता है और मनुवाद का समर्थन करता है लेकिन यह आदमी तो उनसे भी ख़तरनाक है।

यह पीड़ितों और वंचितो के साथ रहकर उनके उद्देश्यों को समझकर उनकी पीठ में ख़ंजर घोपता है। इससे बड़ा जमात का कोई दुश्मन नहीं है। यह सबसे बड़ा अवसरवादी और विश्वासघाती है। सबों को इससे संभलकर रहने की ज़रूरत है मत भूलिये अपने स्वार्थ के लिए यह बीजेपी को भी छोड़ चुका है।

(लालू प्रसाद यादव की फेसबुक वॉल से साभार)