UP चुनाव के अंतिम दो चरण में सभी पार्टियों को भितरघात का डर सता रहा है

सियासत संवाददाता: विधान सभा चुनाव के अंतिम दो चरण यानी कि छठे और सांतवे चरण में एक बार फिर जातीय समीकरण हावी होता दिख रहा हैं। वैसे उत्तर प्रदेश में हर चुनाव में जाति समीकरण सामने आता हैं लेकिन ये आखिरी दो चरण हर पार्टी के लिए अहम हैं। सभी पार्टियों को सबसे ज्यादा भितरघात से इन्ही दो चरणों में झूझना पड़ रहा हैं।

पिछली बार 2013 में इन दो चरणों की 89 सीटो में सबसे ज्यादा समाजवादी पार्टी ने 49 सीट जीती थी। उसके बाद 12 सीटो पर भाजपा और बसपा को जीत मिली थी। कांग्रेस भी 6 सीटें जीती थी और पीस पार्टी, कौमी एकता दल को दो-दो सीट मिली थी। अपना दल को इन दो चरणों में एक सीट मिली थी। चार सीटो पर निर्दलीय जीते थे। सपा की इस भारी भरकम जीत की वजह थी उसके पीछे मुस्लिम का लामबंद होना। लगभग सभी मुस्लिम बाहुल्य सीटो पर सपा जीती थी।

जैसे आजमगढ़ में 10 में से 9 सीट जीत गयी थी. पुरे आजमगढ़ मंडल में 21 सीटो में से 16 सीटें सपा ने जीत ली थी। यही नहीं आजमगढ़ के आसपास के जिले जैसे मऊ, बलिया और गाजीपुर में 30 सीटो में से सपा ने 23 सीट जीत ली थी। इस बार इस क्षेत्र में हालात सपा के लिए उतने मददगार नहीं हैं। पहली बात आजमगढ़ और उससे सटे हुए जिलो में जो भी थोडा बहुत प्रभाव उलेमा कौंसिल का है वो अब बसपा को समर्थन कर रही हैं। दूसरी गाजीपुर में अंसारी बंधू जो पिछली बार कौमी एकता दल से थे इस बार बसपा में विलय कर चुके हैं।

अंसारी बंधुओ का इन चार जिलो में अपना प्रभाव भी बताया जाता हैं. सपा के लिए एक और परेशानी है उसके पुराने क्षत्रपो का अलग होना। अम्बिका चौधरी, नारद राय, विजय मिश्र सब पार्टी छोड़ कर बसपा का दामन चुके हैं. ये सब पूर्व मंत्री हैं और अपने समुदाय में असर रखते हैं। इसके अलावा कई सपा के विधायक जैसे शादाब फातिमा, सुब्बाराम भी खामोश है क्योंकि उनका टिकट कट गया हैं।

ज़ाहिर है हालात कागज़ पर सपा के पक्ष में नहीं हैं. आंकड़ो में तो बसपा मज़बूत लग रही हैं। रही बात भाजपा की तो वो भी भितरघात से झूझ रही हैं। इस तरफ का उसका सबसे बड़ा चेहरा योगी आदित्यनाथ हैं लेकिन उनके गोरखपुर में हिन्दू युवा वाहिनी जिसके योगी संरक्षक हैं उसने 14 उम्मीदवार खड़े कर दिए। सबको वाहिनी से निकाल दिया गया। लेकिन बागियों ने नाम वापस नहीं लिया है और 6 दूसरे निर्दलियो को भी समर्थन दे दिया हैं। टिकट बटवारे का असंतोष भाजपा को भारी साबित हो रहा हैं।

इसी बीच इस इलाके में निषाद दल भी उभर गया हैं। निषाद इस क्षेत्र में काफी भरी संख्या में हैं। ये भाजपा को वोट दे सकते थे लेकिन अब बिलकुल अपनी पार्टी में लगे हैं। इनके अध्यक्ष डॉ संजय निषाद खुद चुनाव भी लड़ रहे हैं। मतलब भाजपा का विजय रथ अति पिछड़े समुदाय निषाद द्वारा पूर्वांचल में रोका जा रहा हैं। निषाद कई सीटो पर प्रभावी है और कम से कम एक सीट पर तो डायरेक्ट लड़ाई में हैं। आंकड़े, जातिगत समीकरण, गुटबाजी सभी का मिश्रण इन दो चरणों पर हावी और सभी पार्टियों इनसे अपने तरीके से निपटने का जरिया तलाश रही हैं।