नई दिल्ली: 11 सितंबर 1989. राजीव गांधी की सरकार का कार्यकाल पूरा होने वाला था। 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए आम चुनाव में कांग्रेस को ऐतिहासिक जीत मिली थी। 404 सीटें जीतकर कांग्रेस सत्ता में थी। उस दिन संसद के पटल पर एक विधेयक रखा गया। इसे रखते हुए सरकार ने दलील दी।
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अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए तमाम सामाजिक आर्थिक बदलावों के बावजूद उनकी स्थिति बेहतर नहीं हुई है। क्रुरता के कई ऐसे मामले सामने आए हैं, जिनमें उन्हें अपनी संपत्ति के साथ जान भी गंवानी पड़ी है। जब भी ये लोग अपने अधिकारों की बात करते हैं और किसी गलत बात का विरोध करते हैं, ताकतवर लोग उन्हें डराने की कोशिश करते हैं। जब भी एससी-एसटी समुदाय से ताल्लुक रखने वाले लोग अपनी और अपनी महिलाओं के आत्मसम्मान की बात करते हैं, प्रभावशाली लोग उन्हें अपमानित करते हैं। ऐसी स्थितियों में सिविल राइट ऐक्ट 1955 और भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) में किए गए प्रावधान उन्हें न्याय दिलाने में कमजोर पड़ रहे हैं।
गैर एससी-एसटी लोगों की ओर से एससी-एसटी समुदाय के लोगों पर किए जा रहे अत्याचार को चिह्नित करने में दिक्कत आ रही है। ऐसे में ज़रूरत इस बात की है कि उनके खिलाफ होने वाले अत्याचार को परिभाषित किया जाए और ऐसे लोगों को सजा देने के लिए कड़े कानून बनाए जाएं। इसके अलावा राज्य और संघ शासित प्रदेश भी एससी-एसटी की सुरक्षा के लिए कानून बनाएं और जिसके साथ अत्याचार हो, उनके पुनर्वास की व्यवस्था करें।
इन दलीलों के साथ केंद्र सरकार ने संसद में एक विधेयक पास किया. इसे नाम दिया गया अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निरोधक) अधिनियम, 1989. संसद से पास होने के बाद इस विधेयक पर राष्ट्रपति ने हस्ताक्षर कर दिए, जिसके बाद 30 जनवरी 1990 को इस कानून को जम्मू-कश्मीर को छोड़कर पूरे देश में लागू कर दिया गया। इसके बाद अप्रैल 2016 में केंद्र सरकार ने इस कानून में कुछ संसोधन किए। इन संसोधनों के साथ 14 अप्रैल 2016 से इस कानून को फिर से लागू किया गया।
किस पर लागू होता है ये कानून
ये कानून देश के हर उस शख्स पर लागू होता है, जो अनुसूचित जाति-जनजाति (एससी-एसटी) का सदस्य नहीं है। अगर ऐसा कोई शख्स एससी-एसटी से ताल्लुक रखने वाले किसी शख्स का उत्पीड़न करता है, तो उसके खिलाफ अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निरोधक) अधिनियम, 1989 के तहत कार्रवाई की जाती है।
किस-किस अपराध के लिए लागू होता है एससी-एसटी ऐक्ट
# अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों के लोगों को अपमानित करना। उन्हें जबरन मल, मूत्र खिलाना.
# एससी-एसटी के किसी सदस्य का सामाजिक बहिष्कार।
# किसी एससी-एसटी के साथ कारोबार से इन्कार।
# किसी एससी-एसटी को काम न देने या नौकरी पर रखने से इन्कार करने।
# किसी एससी-एसटी को किसी तरह की सेवा देने से इन्कार करने।
# अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य से मारपीट करना।
# उनके घर के आस-पास या परिवार में उन्हें अपमानित करना या फिर उन्हें किसी। भी तरह से परेशान करना।
# एससी-एसटी समुदाय के किसी शख्स के कपड़े उतारकर उसे नंगा करना या फिर उसके चेहरे पर कालिख पोतना।
# किसी भी तरह से सार्वजनिक तौर पर अपमानित करना।
# जमीन पर जबरन कब्जा करना, गैरकानूनी ढंग से किसी जमीन को हथिया लेना।
# किसी एससी-एसटी समुदाय के शख्स को भीख मांगने के लिए मजबूर करना।
# उसे बंधुआ मजदूर बनाना।
# वोट देने से रोकना या किसी खास को वोट देने के लिए बाध्य करना।
# किसी महिला को अपमानित करना।
# किसी सार्वजनिक जगह पर जाने से रोकना।
# अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य को अपना मकान छोड़ने पर मजबूर करना।
ये सब ऐसे अपराध हैं, जिनमें भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के तहत कार्रवाई होती है। लेकिन अगर ये अपराध किसी एससी-एसटी के समुदाय से ताल्लुक रखने वाले शख्स के साथ होता है, तो उसमें आईपीसी की अलग-अलग धाराओं के साथ अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निरोधक) अधिनियम, 1989 के तहत भी कार्रवाई होती है।
बता दें कि दलित उत्पीड़न रोकने के लिए आज से 30 साल पहले SC-ST ऐक्ट बना था। इस एक्ट को और भी मजबूती अप्रैल 2016 में मिली। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले की सुनावई के दौरान इस कानून में कुछ बदलाव किया है। केंद्र सरकार कानून में बदलाव को वापस लेने के लिए सुप्रीम कोर्ट में रिव्यू पिटिशन दाखिल करने को कह रही है। लेकिन देश के दलित संगठन इसके विरोध में सड़क पर उतर आए हैं और भारत बंद कर दी है।