सुप्रीम कोर्ट ने बढ़ते Live-in relationship और कानून की गैर हाजिरी में ऐसे रिश्तों में रह रहे लोगों की दिक्कतों पर फिक्र ज़ाहिर की है । कोर्ट ने पार्लियामेंट से Live-in relationship में रह रहीं ख्वातीन और उनके बच्चों के तहफ्फुज़ के कानून बनाने की गुजारिश किया है। साथ ही इन रिश्तों के बारे में कुछ हिदायत भी तय किए हैं जिसमें ऐसे ताल्लुकात में रहने वाली खातून को घरेलू तशद्दुद कानून के तहत तहफ्फुज़ात दिया जा सकता है। दिशा निर्देश का मतलब है बिना शादी बालिग मर्द व खातून का शादी शुदा की तरह रहना।
Live-in relationship के मसले पर तब्सिरा करते हुए अदालत ने यहां तक कहा है कि यह न तो जुर्म है और न ही गुनाह । फिर भी हमारे मुल्क में सामाजी तौर पर यह नाकाबिल ए कुबूल है। शादी करना या न करना या फिर आपस में रिश्ता बना कर साथ-साथ रहना निजी मसला है। Live-in relationship पर यह अहम फैसला जस्टिस केएस राधाकृष्णन व पीसी घोष की बेंच ने सुनाया है।
अदालत ने Live-in relationship में रहने वाली खातीन को गुजाराभत्ता देने की मांग खारिज करते हुए कहा है, ‘उसे (खातून) मालूम था कि जिसके साथ वह ताल्लुक या रिश्ता बना रही है वह शादी-शुदा है। उसके दो बच्चे हैं। उसकी बीवी की मुखालिफत के बावजूद उसने ताल्लुक बनाए। अगर बेंच खातून के Maintenance का हुक्म देंगे तो कानूनन ब्याहता बीवी और उसके बच्चों के साथ नाइंसाफी होगी।’
अदालत ने कहा, दरखास्तगुजार खातून का स्टेटस मिस्ट्रेस का है जो कि अब गम व परेशानी में है। Live-in relationship के Survivor गहरे फिक्र का मौजू हैं। उस वक्त हालात और फिक्र बानी होती है जब ऐसा शख्स गरीब और अनपढ़ हो। ऐसे रिश्तों से पैदा हुए बच्चे भी मुसीबत झेलते हैं। पार्लियामेंट को इनके बचाव के इक्दामात करने चाहिए। कानून बनाना चाहिए। पार्लियामेंट के पास ऐसे मुद्दों की भरमार होगी। पार्लियामेंट या तो कानून बनाए या फिर मौजूदा कानून में तरमीम करे ताकि लिव इन रिलेशनशिप में न रहने वाली ख्वातीन व उनके बच्चों को तहफ्फुज़ मिल सके।