मदरसा बोर्ड को माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के समकक्ष मान्यता न दिए जाने की वजह से हजारों छात्रों का भविष्य अधर में आ गया है। इन छात्रों को अब न तो कहीं स्कूल/ कॉलेज में एडमिशन मिल रहा है और न ही इनको किसी संस्थान में नौकरी मिल पा रही है।
दरअसल, काफी लंबे समय से मदरसा बोर्ड के छात्रों के अच्छे भविष्य के लिए यह मांग की रही है कि उत्तराखंड मदरसा बोर्ड को माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के समकक्ष का दर्जा दिया जाए। इसके लिए मदरसा बोर्ड द्वारा शासन को प्रस्ताव भी भेजा जा चुका है और मदरसों के संगठन भी इसके लिए कई बार आंदोलन कर चुके हैं।
उत्तराखंड मदरसा बोर्ड के उप रजिस्ट्रार हाजी अखलाक अहमद ने बताया कि 15 सितंबर, 2015 में माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की समिति की बैठक में मदरसा बोर्ड को समकक्ष का दर्जा दिलाने के प्रस्ताव को पारित कर दिया गया था। इसके साथ ही 6 जनवरी 2016 को माध्यमिक शिक्षा परिषद् की बोर्ड बैठक में इस प्रस्ताव को हरी झंडी भी दे दी गई थी।
लेकिन इसके बावजूद अभी तक मदरसा बोर्ड को समकक्ष का दर्जा दिए जाने का शासनादेश जारी नहीं किया गया।
बता दें कि साल-2013 से मदरसा बोर्ड ने अपने स्तर पर परीक्षाएं करानी शुरू की। तब से अब तक मुंशी समकक्ष दसवीं (फारसी) में 4464, मौलवी समकक्ष दसवीं (अरबी) में 6200 और आलिम समकक्ष बारहवीं में 3096 छात्र परीक्षा में पास हो चुके हैं। इन छात्रों के सामने अब नौकरी का संकट खड़ा हो गया है।
ग़ौरतलब है कि उत्तराखंड राज्य बनने के बाद से उत्तर प्रदेश मदरसा परिषद्, उत्तराखंड मदरसा बोर्ड की परीक्षाओं का आयोजन करता था।
उत्तराखंड मदरसा एसोसिएशन के अध्यक्ष मौलाना इफ्तिखार अहमद कासमी बताते हैं कि मदरसों के छात्रों में प्रतिभा की कोई कमी नहीं है। इन छात्रों को उच्च शिक्षा हासिल करने का मौका मिले, तो ये भी ऊंचा मुकाम हासिल कर सकते हैं।
कासमी बताते हैं कि उत्तराखंड मदरसा बोर्ड (जब यूपी मदरसा शिक्षा परिषद् से परीक्षा होती थी) से तालीम हासिल करने वाले कई छात्र जामिया मिल्लिया इस्लामिया, अलीगढ़ यूनिवर्सिटी, मौलाना आजाद यूनिवर्सिटी से उच्च शिक्षा हासिल कर रहे हैं।