महात्मा गाँधी के शहादत को 70 साल हो गए। महात्मा गाँधी की हत्या जिस आदमी ने किया था वह कोई अकेला इन्सान नहीं था। उसके साथ साजिश में भी बहुत से लोग शामिल थे और देश में उसका समर्थन करने वाले भी बहुत लोग थे। वह एक विचारधारा का नेता था, जिसकी बुनियाद में नफरत कूट कूट कर भरी हुई है।
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उस समय के ग्रहमंत्री सरदार पटेल ने एक पत्र में लिखा था कि महात्मा गाँधी की हत्या के दिन कुछ लोगों ने ख़ुशी से मिठाइयाँ बांटी थीं। नाथूराम गोड्से और उसके साथियों के पकड़े जाने के बाद से अबतक उसके साथ हमदर्दी दिखाने वाले खामोश रहते थे, उनकी हिम्मत नहीं पड़ती थी कि कहीं यह बता सकें कि वह नाथूराम से हमदर्दी रखते हैं लेकिन अब बात बदली गई है। अब उसके साथियों ने फिर सर उठाना शुरू कर दिया है।
देश के हिन्दुओं की प्रतिनिधित्व करने वाले एक नेता ने एक दिन एक टीवी डिबेट में बगैर सोचे समझे यह कह दिया था कि नाथूराम गोड्से आदरणीय हैं और गाँधी की हत्या सामान्य हत्या जैसी घटना ही है। क्योंकि गोड्से के समर्थक अब नाथूराम को सम्मान देने की कोशिश करने लगे हैं। कुछ शहरों में नाथूराम गोड्से के मंदिर बन गए हैं। महात्मा गाँधी के हत्यारे को इस तरह से सम्मानित करने के पीछे वही रणनीति और सोच काम कर रही है जो महात्मा गाँधी की हत्या के पहले थी, गाँधी की हत्या के पीछे की तर्क का बार बार तजरबा किया गया है लेकिन ओर जो बहुत नजरअंदाज किया जा रहा है वह है कि महात्मा गाँधी को मरने वाले बात को दबाने और छुपा देने की रणनीति पर काम करते थे जबकि महात्मा गाँधी अपने समय के सबसे महान कम्यूनिकेटर थे।