गुलबर्ग सोसायटी हत्याकांड में ज़किया ज़ाफ़री की रिवीज़न पिटीशन पर गुरुवार को आए फैसले को लेकर मुख्यधारा मीडिया के झूठ का खुलासा हुआ है।
हिंदी न्यूज़ पोर्टल मीडिया विजिल द्वारा की गई पड़ताल में पता चला है कि तकरीबन सभी प्रमुख मीडिया संस्थानों ने एक ही ख़बर चलाई है कि नरेंद्र मोदी और 61 अन्य की कथित कनेक्शन पर नए सिरे से 2002 के नरसंहार की जांच कराने की ज़ाफ़री की याचिका को गुजरात उच्च न्यायालय ने खारिज कर दिया है।
जबकि दि वायर और न्यूज़क्लिक ने इस बात की पुष्टी की है कि ज़किया जाफरी की पुनरीक्षण याचिका को ‘आंशिक’ मंजूरी दी गई है। मीडिया विजिल के मुताबिक, अख़बारों में केवल दि टेलिग्राफ और आउटलुक ने सही ख़बर चलाई है कि ज़ाफ़री के पास अब भी आवेदन करने का मौका बचा है।
मोदी को क्लीन चिट दिए जाने के ख़िलाफ गुजरात उच्च न्यायालय में ज़किया ज़ाफ़री ने 26 दिसंबर 2013 को क्रिमिनल रिवीज़न पिटीशन दायर की थी। गुरुवार को आए फैसले में कोर्ट ने मामले में नरेंद्र मोदी और 61 अन्य की कथित संलिप्तता की जांच नए सिरे से कराने के लिए आवेदन करने की उन्हें छूट दे दी है। पूरा मीडिया इसके ठीक उलट ख़बर चला रहा है कि हाइ कोर्ट ने ज़ाफ़री की याचिका खारिज की है। दि वायर की खबर कहती है कि यह फैसला ज़किया ज़ाफ़री के लिए सतह पर प्रतिकूल दिखता है, लेकिन इसमें आशा की एक किरण है।
बता दें कि याचिका में मांग की गई थी कि मोदी और वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों एवं नौकरशाहों सहित 59 अन्य को साजिश में कथित रूप से शामिल होने के लिए आरोपी बनाया जाए। इसमें इस मामले की नए सिरे से जांच के लिए उच्च न्यायालय के निर्देश की भी मांग की गई थी।
कोर्ट के फैसले पर सामाजिक कार्यकर्ता और मुकदमे में सह-याचिकाकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ ने कहा, ”हाइ कोर्ट ने ज़किया जाफरी की क्रिमिनल रिवीज़न एप्लीकेशन के एक हिस्से को कबूल कर के ऐतिहासिक कानूनी कार्यवाही को ज़िंदा रखा है, हालांकि उन्होंने साजिश के बारे में सिर्फ संजीव भट्ट के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी को लेकर कहा है कि साजिश को मैं नहीं मानती हूं मगर जब नए सिरे से जांच की मांग इसी सरकार ने मान ली है तो ज़ाहिर है कि साजिश के बारे में भी तहक़ीक़ात हो सकती है और होगी।”