बीफ़ के बड़े निर्यातकों में हिंदू सबसे आगे, फिर क्यों निशाने पर हैं मुसलमान

इलाहाबाद- गौहत्या से लेकर अवैध बूचड़खानों तक मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाया जा रहा है । बीफ़ के व्यापार को लेकर ये भ्रम फैलाया जा रहा है कि मुस्लिम ही बीफ़ का व्यापार करते हैं लेकिन हक़ीक़त इससे बिल्कुल अलग है। बीफ़ निर्यात और व्यापार दोनों ही क्षेत्रों में मुस्लिम दूसरे समुदायों से बहुत पीछे हैं या फिर यूं कहा जाए कि बीफ़ निर्यात करने वाली कंपनियों में मुस्लिम ना के बराबर हैं।

दरअसल जानवर को किसान तब बेचता है जब वो जानवर उसके लिए बोझ बन जाता है। गरीब किसान बूढे जानवर को अपने पास रखकर चारा नहीं खिला सकता है क्योंकि उसकी आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी नहीं होती है।
ऐसे जानवरों को बेचने के लिए देश भर के कई राज्यों में मेले लगते हैं जहां जानवर खरीदे और बेंचे जाते हैं। इस खरीदी में मुसलमानों की कोई भूमिका नहीं होती है । कृषि में इस्तेमाल नहीं किए जाने वाले मवेशियों को बड़ी कंपनिया कम दामों पर खरीद लेंती हैं और वही बीफ़ निर्यात करतीं है।
बीफ को लेकर चल रही राजनीति को लेकर एक सच ये भी है कि भारत उन देशों में शामिल है जहां से बीफ़ निर्यात किया जाता है। अब सवाल ये है कि जब मुसलमान ना तो गौवंश खरीदने वाला है ना ही बेचने को फिर उस पर आरोप क्यों लगाया जाता है।
विशेषज्ञों के मुताबिक देश में बीफ की बिक्री और निर्यात पर रोक लगती है तो फिर मवेशियों के लिए चारा बड़ी समस्या बन जाएगा। सरकार के लिए इतने चारे का इंतेज़ाम करना गले की हड्डी बन जाएगा ।
केंद्र और बीजेपी शासित राज्य सरकारें बीफ के निर्यात और व्यापार से जुड़े सच को जानती हैं लेकिन धुव्रीकरण की राजनीति की वजह से कोई ठोस कदम नहीं उठाना चाहती है। गौरक्षक लगातार गौहत्या का बहाना बनाकर मुस्लिमों निशाना बना रहे हैं । जिसका ताज़ा उदाहरण अलवर की घटना है जिसमें गौरक्षकों ने पहलू खान नाम के ग्वाले की पीटपीटकर हत्या कर थी ।
बीजेपी शासित राज्यों में गौरक्षा के नाम पर लगातार मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाया जा रहा है । कुछ विद्वानों का कहना है कि बीफ़ को लेकर चल रही राजनीति से निपटने के ज़रूरी है कि मुस्लिम समुदाय एक साल मांस खाने से बचे ।