राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने मीडिया से सत्ता में बैठे लोगों से सवाल पूछने को कहा है। उन्होंने है, “सत्ता में बैठे लोगों से सवाल पूछने का अधिकार राष्ट्र के संरक्षण की बुनियाद है, खासतौर से ऐसे समय में जब सबसे ऊंची आवाज में बोलने वालों के शोर में असहमति की आवाजें डूब रही हैं।” राष्ट्रपति ने ये बातें गुरुवार को रामनाथ गोयनका व्याख्यान में कही।
इस दौरान उन्होंने कहा कहा, “सत्ता में बैठे लोगों से सवाल पूछने की जरूरत राष्ट्र के संरक्षण और सही मायने में एक लोकतांत्रिक समाज का सारतत्व है। यह वो भूमिका है जिसे परंपरागत रूप से मीडिया निभाता रहा है। और उसे आगे भी इसका निर्वाह करना चाहिए।” फिर उन्होंने कहा, “कारोबारी नेताओं, नागरिकों, और संस्थानों सहित लोकतांत्रिक व्यवस्था के सभी हितधारकों को यह महसूस करना चाहिए कि सवाल पूछना अच्छा है। सवाल पूछना स्वास्थ्यप्रद है। दरअसल, यह हमारे लोकतंत्र की सेहत का मूलतत्त्व है।”
राष्ट्रपति कहा, “मेरी समझ से प्रेस अगर सत्ता में बैठे लोगों से सवाल पूछने में विफल रहता है तो यह कर्त्तव्य पालन में उसकी विफलता मानी जाएगी। तथापि इसके साथ ही उसे सतहीपन और तथ्यात्मकता, रिपोर्टिंग और प्रचार के बीच का फर्क समझना होगा। मीडिया के सामने यह सबसे बड़ी चुनौती है। यह वह चुनौती है जिसका उसे हर हाल में मुकाबला करना चाहिए।”
इसके बाद उन्होंने कहा कि मीडिया को न्यूनतम प्रतिरोध का रास्ता चुनने के लालच से परहेज करना चाहिए जो इस बात की अनुमति देता है कि वर्चस्व वाले दृष्टिकोण पर सवाल उठाए बिना इसे जारी रहने दिया जाए। मीडिया को चाहिए कि दूसरों को सत्ता पर सवाल उठाने का अवसर उपलब्ध कराए। मीडिया को स्वतंत्र और निष्पक्ष रिपोर्टिंग के लिए अपनी प्रतिबद्धता से समझौता किए बिना हर तरह के दबावों को झेलने और सतर्क रहने की जरूरत है।
प्रणब मुखर्जी ने कहा, “मेरा हमेशा से यह विश्वास रहा है कि बहुलवाद, सामाजिक, सांस्कृतिक, भाषाई और जातीय विविधता भारतीय सभ्यता की नींव है। इसीलिए हमें वर्चस्व वाले पाठ को लेकर संवेदनशील होने की जरूरत है। क्योंकि उनकी ऊंची आवाज के शोर में असहमति के स्वर दब रहे है।”