हालिया महीनों के दौरान मस्जिदुल अक़्सा पर इस्राईल का अतिक्रमण बढ़ गया है। 2 जून 2019 को लगभग 1200 बसाए गए ज़ायोनी, इस्राईली सैनिकों की मदद से पवित्र मस्जिदुल अक़्सा में दाख़िल हुए जिसका नमाज़ पढ़ रहे फ़िलिस्तीनियों ने विरोध किया जिसके नतीजे में ज़ायोनी पुलिस और नमाज़ियों के बीच झड़प हुयी।
पार्स टुडे डॉट कॉम के अनुसार, मस्जिदुल अक़्सा पर इस्राईलियों के बढ़ते अतिक्रमण के संबंध में कुछ बिन्दुओं का उल्लेख ज़रूरी लगता है। पहला यह कि हालिया महीनों के दौरान मस्जिदुल अक़्सा पर इस्राईल के अतिक्रमण में तेज़ी आयी है।
मार्च 2019 को 2000 से ज़्यादा बसाए गए ज़ायोनियों ने इस्राईली सैनिकों की मदद से मस्जिदुल अक़्सा पर अतिक्रमण किया था। जैसा कि 2 जून की घटना के पीछे भी इस्राईली सैनिकों का हाथ था, इसलिए यह बात पूरे विश्वास से कही जा सकती है कि मस्जिलुद अक़्सा पर अतिक्रमण का नया चरण बसाए गए ज़ायोनियों का ख़ुद से प्रेरित क़दम नहीं है बल्कि ज़ायोनी शासन की सुनियोजित कार्यवाही के तहत अंजाम पा रहा है।
दूसरा यह कि मस्जिदुल अक़्सा पर अतिक्रमण न सिर्फ़ फ़िलिस्तीनी जनता के धार्मिक अधिकारों का खुला उल्लंघन है बल्कि अंतर्राष्ट्रीय अधिकार के मूल सिद्धांत के भी ख़िलाफ़ है।
बसाए गए ज़ायोनियों और इस्राईली सैनिकों ने जिस समय मस्जिदुल अक़्सा पर अतिक्रमण किया उस समय बड़ी संख्या में फ़िलिस्तीनी नमाज़ी इस मस्जिद में एतेकाफ़ नामक विशेष उपासना कर रहे थे।
तीसरे यह कि ताज़ा अतिक्रमण की घटना ऐसी हालत में हुयी है कि पिछले वर्षों के दौरान सहमित के अनुसार, पवित्र रमज़ान के आख़िरी दस दिन बसाए गए ज़ायोनियों को मस्जिदुल अक़्सा में दाख़िल होने की इजाज़त नहीं थी लेकिन मौजूदा साल ज़ायोनियों ने इस सहमति का उल्लंघन किया जिसकी वजह से फ़िलिस्तीनी नमाज़ियों और ज़ायोनी सैनिकों में झड़प हुयी।
अंत में यह कि विश्व समुदाय और मानवाधिकार की रक्षा का दम भरने वाले जिस तरह फ़िलिस्तीनियों के ख़िलाफ़ इस्राईल के अपराधों के संबंध में ख़ामोश रहते हैं, उसी तरह उन्होंने मस्जिदुल अक़्सा पर इस्राईल के अतिक्रमण के संबंध में भी ख़ामोशी अख़्तियार कर रखी है और यही ख़ामोशी ज़ायोनी शासन का समर्थन करने के समान है जिसकी वजह से वह फ़िलिस्तीनियों के ख़िलाफ़ अपराध में दुस्साहसी होता जा रहा है।