मौलाना आज़ाद और सर सय्यद अहमद हिन्दू-मुस्लिम एकता के वाहक थे

मौलाना अबूल कलाम आज़ाद और सर सय्यद अहमद खान बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक में एकता पर यकीन रखने वाले नेता थे। दरअसल दोनों की फ़िक्र का मकसद प्राचीन भारतीय संस्कृति और इस्लामी संस्कृति का एक खूबसूरत संयोजन है।

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इन विचारों का इज़हार जामिया मिल्लिया इस्लामिया के प्रोफेसर अख्तरुल वासे ने किया। वह मौलाना आज़ाद नेशनल उर्दू यूनिवर्सिटी में आज़ाद दिवस के समारोह के संबंध में आयोजित प्रोग्राम में संबोधित कर रहे थे। उनके संबोधन का विषय “अल्पसंख्यक संस्कृति के वाहक सर सय्यद मौलाना आज़ाद” था।

प्रोफ़ेसर अख्तरुल वासे ने कहा कि दोनों नेता पर मुश्किल भरे हालात के चश्मदीद गवाह थे। जहां सर सय्यद ने 1857 की भयानक मंजर देखा, वहीं मौलाना आज़ाद ने आज़ादी के लड़ाई की मुश्किलें झेलीं। दोनों कौम को संभालने और एक सही दिशा देने की कोशिश करते रहे। उन्होंने दोनों नेताओं के रास्ट्रीय एकता और हिन्दू-मुस्लिम एकता के नज़रिए की वर्णन के लिए उनके लेखों और भाषणों से हवाला पेश किया। जिसमें मौलाना ने कहा था कि “हम में अगर कुछ हिन्दू चाहते हैं कि एक हजार साल पहले की उनकी जिंदगी वापस ले आयें और उसी तरह अगर मुसलमान चाहते हैं कि गुजरी हुई संस्क्रति और समाज को फिर ताज़ा करें, जो एक हजार साल पहले इरान और मध्य एशिया से लाये थे, तो यह दोनों सपना देख रहे हैं जो पूरा नहीं हो सकता। दोनों को जमीनी सच्चाई को नज़र में रखते हुए भाईचारे और एकता का प्रदर्शन करना चाहिए।”

उसी तरह सर सय्यद ने हिन्दुवों और मुसलमानों को अपनी दो आँखें बताते थे। डॉक्टर मोहम्मद असलम परवेज़ ने कहा कि दोनों नेताओं ने इस्लाम को दीन की हैसियत से समझा और मसल्की अंतर से गुरेज़ किया। उन्होंने कहा कि मौलाना आज़ाद जहां क़ुरान का अनुवाद लिखते हैं वहीं सितार भी बजाते हैं और हिन्दू मुस्लिम एकता की भरपूर समर्थन करते हैं।