उम्मीद है PM मोदी 26 फरवरी को ‘मन की बात’ में गुजरात दंगों का ज़िक्र करेंगे

16 फ़रवरी को जब मैंने अपने ईमेल अकाउंट को खोल तो देखा कि एक संदेश प्रधानमंत्री कार्यालय आया हुआ था। यह सन्देश रेडियो पर नरेंद्र मोदी द्वारा ‘मन की बात’ को लेकर था जिसमें सुझाव पूछा गया था। इसके तीन दिन बाद 19 फरवरी को फतेहपुर में एक चुनावी रैली को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कब्रिस्तान और शमशान के लिए भूमि और रमजान और होली के दौरान बिजली वाली बात कही थी। इसके बाद 22 फरवरी को भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने अपने भाषण में मुंबई आतंकी हमले के मामले में दोषी पाकिस्तानी आतंकवादी अजमल कसाब का नाम लेकर राजनीतिक विरोधियों पर हमला किया था।

प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह ने साल 2012 के बाद विकास के नाम पर राष्ट्रीय राजनीति में प्रवेश करने का फैसला किया और सबका साथ सबका विकास नारा दिया। मोदी ने गुजरात में आयोजित सद्भावना रैलियों और साल 2014 के आम चुनावों में चीख-चीख कर कहा कि ‘अच्छे दिन’ आएंगे। 125 करोड़ भारतीयों का विकास, इस तरह की अपील और नारे लगाए गए। यह सब ‘मौत का सौदागर’ वाली छवि से बाहर निकल ‘विकास पुरुष’ की छवि में आने का प्रयास था। उनके प्रयास बेकार नहीं गए।

लोग उनके समर्थन में खड़े हो गए और कहानी ही बदल गई। यह मोदी का जादू था, लोग उनके पक्ष थे जिसका नतीजा भारतीय जनता पार्टी केंद्र में सत्ता में आ गई। इस लहर में विपक्ष भी ढह गया। मुझे एक मामला उस समय का याद है कि जब एक 90 साल की मतदान के लिए बूथ पर आई और उसने पार्टी का नाम नहीं लेकर मतदान अधिकारी से पूछा कि मोदी का बटन कौन सा है।

अधिकांश लोगों का मानना ​​था कि प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी बदल जायेंगे और वह दिखा भी जब मोदी ने अपने शपथ ग्रहण समारोह में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ समेत सार्क नेताओं को आमंत्रित किया। उनका विश्वास मजबूत हो गया, वह एक के बाद एक विदेशी दौरों पर गए और कहा गया कि विदेशों में भारत की बिगड़ी छवि को साफ़ करने का प्रयास कर रहे हैं।

इसके साथ ही रोचक और आकर्षक नाम वाली मेगा योजनाओं को अपनी छवि को मजबूत करने के लिए शुरू किया हालांकि उनके विरोधियों ने उन पर यूपीए की योजनाओं का नाम बदलने का आरोप लगाया। ‘लव जिहाद’, गोहत्या के नाम पर निर्दोष लोगों की मौत हो गई, लेकिन मोदी अपने अवतार को मजबूत बनाने में व्यस्त थ। असहिष्णुता के आरोप भी विभिन्न मंचों के माध्यम से उठाए गए। लोगों को उम्मीद थी कि मोदी इन मुद्दों पर कुछ बोलेंगे लेकिन नहीं बोले। शायद सबका साथ सबका विकास वाला नारा अब वो भूल गए थे।
19 फरवरी को फतेहपुर के भाषण में उनके इरादे साफ़ थे। यह सब जानबूझकर किया गया था। इसने उस अतीत को याद दिला दिया जिसमें उन्होंने कथित तौर पर हिंसा, नफरत और विभाजन की राजनीति का इस्तेमाल किया था। साल 2002 के गुजरात दंगों के दौरान मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे और 2500 से अधिक मुसलमानों को बेरहमी से मार गया था हजारों घायल और बेघर हुए थे। इसके अलावा भी अनेक जुल्म हुए। वैसे मोदी अकेले ही इस तरह की राजनीति करने वाले नहीं हैं।
लालकृष्ण आडवाणी भी ऐसी सूची में आते हैं। हाशिमपुरा दंगे, सिख विरोधी दंगे और मुम्बई दंगे भी ऐसी श्रेणी में आते हैं जो नेताओं ने ही करवाये थे। लेकिन मुस्लिम, दलित और अन्य अल्पसंख्यकों को भारत में जो नुकसान उठाना पड़ा है उसका मोदी को प्रधानमंत्री के रूप में एहसास होता है। हम एक भाजपा नेता या संघ के प्रचारक से इस वास्तविकता को स्वीकार करने की उम्मीद नहीं कर सकते, लेकिन देश के प्रधानमंत्री से तो उम्मीद करना चाहिए। आखिरी बात, पिछले महीने प्रधानमंत्री ने ‘मन की बात’ में छात्रों को संबोधित कर उनको शुभकामनाएं दी थी। फरवरी का महीना साल 2002 के गुजरात दंगों के साथ मेल खाता है। आशा है कि प्रधानमंत्री 26 फ़रवरी को ‘मन की बात’ में गुजरात के सांप्रदायिक दंगों के बारे में बात करें।

(यह आलेख उम्मीद.कॉम से लिया गया है)