मीट कारोबारियों की बेमियादी हड़ताल जारी, योगी सरकार को कोर्ट में मिल सकती है चुनौती

लखनऊ: उत्तर प्रदेश में आज से मांस कारोबारियों की बेमियादी हड़ताल शुरू हो गई है। वैसे तो ये हड़ताल 2 दिन पहले से ही जारी है लेकिन कुछ व्यापारियों के पास पुराना स्टॉक बचा होने कारण उनकी खपत के बाद अब सभी व्यापारी सामुहिक रूप से एक साथ हड़ताल पर चले गए हैं।

हालांकि सूत्रों के हवाले से ये खबर मिली है कि मांस व्यापारियों का बड़ा वर्ग योगी सरकार के इस फैसले को न्यायालय में चुनौती देने जा रहा है।

उत्तर प्रदेश सरकार के अवैध बूचड़खानों के बंद कराए जाने के कारण मांस जुड़े व्यपारियों के आर्थिक हालात पर काफी फर्क पड़ा है। लखनऊ में जो दुकाने दशकों से कभी बंद नहीं रहीं, उनपर अब ताला लटक रहा है। मांस कारोबार से बड़ी संख्या में मुसलमान और दलित जुड़े हुए हैं लेकिन राज्य सरकार की इस कार्यवाई से लाखों लोग बेरोज़गार हो चले हैं, उनके सामने भूखमरी की नौबत आ गई है।

लाईसेंस की जटिल प्रक्रिया

मांस व्यापारियों का कहना है कि अवैध बूचड़खानों पर पाबंदी वाजिब है ​लेकिन कम से कम उन लोगों को कुछ समय मिलना चाहिए था। उन्होंने कहा है कि लाईसेंस लेना एक जटिल प्रक्रिया है।

सियासत हिंदी से एक मांस व्यापारी ने बताया कि लखनऊ में कुल लाइसेंस धारकों की संख्या 603 है लेकिन इनमें से सिर्फ 340 लाइसेंस का रिन्युवल हो पाया है और बाक़ी का नहीं।

लखनऊ नगर निगम ने बड़ी संख्या में ऐसी दुकानों को बंद करा दिया है। वहीँ व्यापारियों ने पूछताछ और कार्रवाई के डर से अपनी दुकाने बंद कर रखी है। खाद्य विभाग नगर निगम के लाइसेंस को मानता नहीं है और लखनऊ में उन दुकानों के खिलाफ़ कार्रवाई हो रही है, जो म्युनिसिपल कमिश्नर के आदेश के बिना चला जा रही हैं।
आखिर क्या कहता है बूचड़खाना कानून?


यूँ तो बूचड़खानों के मामले में जो कानून है वो पचास के दशक है, लेकिन इसे आबादी वाले ईलाको को दूर रखने के लिए सुप्रीम कोर्ट और एनजीटी पहले ही आदेश दे चुका है।

साल 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि सभी राज्य सरकारें एक समिति बनाएं जिसका काम शहरों में बूचड़खानों की जगह तय करना और उनका आधुनिकीकरण कराना होगा, लेकिन उस वक़्त सरकार ने इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाए।

अब राज्य सरकार इन दुकानों को अवैध करार देकर इन दुकानों को सील कर रही है।