कोलकाता। आज आपको एक ऐसे आईपीएस अधिकारी से रू-ब-रू करवाते हैं जिन्होंने अपनी जिंदगी में शेरो शायरी और उर्दू भाषा से बेइनतहां मोहब्बत की। अपनी इसी मोहब्बत की बदौलत आज वह एक आईपीएस अधिकारी के साथ-साथ बेहद खूबसूरत शायर भी हैं।
नाम है इनका मुरलीधर शर्मा जो वर्तमान में कोलकाता की स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) में पुलिस उपायुक्त पद पर कार्यरत हैं। इस गाल प्रेमी ने अपना तख़ल्लुस ‘तालिब’ रखा है जो दर्शाता है कि उर्दू इनके खून में है।
हालाँकि मुरलीधर खुद को एक सफल आईपीएस अधिकारी नहीं मानते लेकिन शायरी और ग़ज़ल के मामले में वो सफल बताते हैं क्योंकि शायरी के पहले मजमुए का नाम हासिल ए सहरां वरदी (रेगिस्तान में भटकने से क्या हासिल) रखा है। बचपन को याद करते हुए वो कहते हैं कि उनके पिता जयकरण शर्मा चाय की दुकान चलाते थे जबकि माँ संतोष शर्मा गृहिणी थीं।
मुरलीधर को अपने स्कूल के दिनों के दौरान ही उर्दू और कला से प्यार था। उनके पिता कबड्डी टूर्नामेंट में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करते थे लेकिन रामलीला में राम का किरदार निभाने पर आलोचना की थी। उन्होंने जिला स्तर तक कबड्डी खेला लेकिन परिवार के दबाव में रामलीला को छोड़ दिया था। बाद इसके जब उन्होंने मुशायरों में शिरकत करनी शुरू कर दी तब उन्हें पता चला कि गजल और शायरी क्या होती है।
फिर जो उर्दू के साथ उनका रिश्ता जुड़ा वह अब भी कायम है। बल्कि यूँ कहें कि दिन-ब-दिन और मज़बूत हो जा रहा है।
एक मौके पर उन्होंने अपनी ग़ज़ल पेश की थी कि ‘यह गठरी जिंदगी की कभी भारी नहीं लगती, है तेरा साथ तो आंधी मुझे आंधी नहीं लगती, और बदन का बरहना हिस्सा मोहब्बत से तुम ढकती हो, मेरा चादर हो छोटी भी, मुझे छोटी नहीं लगती।
हालाँकि उनकी पत्नी भी संगीत प्रेमी हैं लेकिन उन्हें यह भी शिकायत रहती है कि शायरी के चक्कर में उनके पति समय नहीं दे पाते हैं लेकिन जब वो उनकी सुरीली आवाज़ में शेर सुनती हैं तो सारी शिकायतें और नाराज़गी फ़ौरन दूर हो जाती है।