भारत के इस लोकतांत्रिक देश में सीबीआई और सुप्रीम कोर्ट दो मुख्य न्यायायिक सेवा माने जाते हैं| अगर किसी को इंसाफ नहीं मिलता तो वो सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाता है| और जब किसी मामले की जाँच पड़ताल में पुलिस नाकाम हो जाती है तो उसकी छानबीन के लिए सीबीआई को बुलाया जाता है| इसलिए कहा जाता है की सीबीआई को पूर्ण रूप से किसी भी सत्ता की तरफ से स्वतंत्र होना चाहिए| कुछ सालों पहले सीबीआई की स्वतंत्रता को लेकर यह मामला सुप्रीम कोर्ट के समक्ष गया था| जिसमें पाया गया कि सीबीआई सरकार के इशारों पर काम कर रही है|
जहां सरकार में बैठे अहम लोगों पर भ्रष्टाचार के मामले होते थे उसको दबा देती थी| यह सब मामले को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि देश में न्याय का राज चलने के लिए सीबीआई को सरकार से स्वतंत्र होना चाहिए| सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर दो बातें कहीं एक तो सीबीआई के निदेशक का कार्यकाल न्यूनतम दो साल का होना चाहिए और दूसरी बात यह कि सीबीआई जॉइंट डायरेक्टर पद से ऊपर के जितने भी अफसर हैं, अगर उनका तबादला या प्रमोशन होता है, तो यह सेंट्रल विजिलेंस कमीशन के तीनों कमिश्नर, गृह सचिव और निजी सचिव के सहमति से ही होना चाहिए|
अदालत ने कहा कि सीबीआई के ऊपर सेंट्रल विजिलेंस आयोग की निगरानी होनी चाहिए और सीवीसी को संवैधानिक स्थान देकर उसे सरकार से स्वतंत्र रखना चाहिए| हालाँकि अब वक़्त बदल चुका है जो भी नियम क़ानून बनाये गए थे सुप्रीम कोर्ट द्वारा सीबीआई को लेकर उसका हनन किया जा रहा है| अब सरकार सीबीआई को पिंजरे में तोते की तरह बनाकर रख रही है| जब जो चाहे जैसा चाहे सरकार अपना काम सीबीआई से करवाती है|
वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण का कहना है कि पिछली बार जब सीबीआई के डायरेक्टर निदेशक रिटायर हुए तो इन्होंने वो बैठक ही नहीं बुलाई, जिसमें सीबीआई नए डायरेक्टर का चयन हो उसके बाद एक गुजरात के अफसर राकेस अस्थाना जो अपेक्षाकृत एक जूनियर अफसर थे उन्हें कार्यकारी डायरेक्टर बना दिया गया| बताया जाता है कि राकेस अस्थाना मोदी जी और अमित शाह के बहुत खास में आते हैं| हालाँकि इस नियुक्ति पर सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गयी थी जिसके बाद उन्हें हटा दिया गया| उसके बाद एक नियमित डायरेक्टर का चयन हुआ|
एक रिपोर्ट के अनुसार राकेस अस्थाना पर 4000 करोड़ के मनी लोंड्रिंग का आरोप है| एक बैठक में सीबीआई डायरेक्टर बताते हैं कि उन्होंने अभी स्टर्लिंग बायोटेक मामले में एक एफआईआर दर्ज की है, जिसमें ओवर इनवॉइसिंग के जरिये 4,000 करोड़ रुपये की मनी लॉन्ड्रिग हुई है| इस मामले में डायरी बरामद हुई है और उसमें कई जगह राकेश अस्थाना, का नाम है जो उस समय सूरत पुलिस कमिश्नर थे, का नाम भी आया है कि उन्हें कई करोड़ रुपये दिए गए| जिसके बाद डायरेक्टर ने कहा कि इनकी नियुक्ति, इनका प्रमोशन कैसे किया जा सकता है. इनको तो कायदे से तो सीबीआई में रहना ही नहीं चाहिए| हालाँकि उसके कुछ दिनों बाद पता चला की राकेस अस्थाना का प्रमोशन हो गया उनको सीबीआई के एक अहम् पद पर जगह मिल गयी है| मीडिया के अनुसार पता चला है कि मंत्रियों के साथ एक बैठक बुलाई गयी थी जिसमे पीएम भी शामिल थे उसी दौरान राकेस के प्रमोशन का आदेश दिया जाता है |
22 तारीख को प्रधानमंत्री गुजरात में थे और उसी दिन यह आदेश जारी कर दिया गया कि राकेस अस्थाना को प्रमोट कर दिया गया है| इससे साफ पता चलता है कि मौजूदा सरकार किस तरह से क़ानून का उल्लंघन कर रही है| सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का उल्लंघन कर रही है और सीबीआई की स्वतंत्रता और ईमानदारी को ख़त्म करने पर लगी है|